लखनऊ– परंपरागत फसलों में मिल रहे घाटे ने किसानों की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ दिया है। घाटे से परेशान किसान आलू और गेहूं की परंपरागत खेती को छोड़ औषधीय फसलों को अपना रहे हैं। कन्नौज के किसान अपनी दशा सुधारने के लिए आलू और गेहूं की जगह सतावर और तुलसी की खेती कर रहे हैं। यूं तो कन्नौज में आलू और गेहूं मुख्य परंपरागत फसलें हैं, लेकिन मौसम के बदले मिजाज और बाजार में इनके भावों में उतार-चढ़ाव के कारण इन फसलों से किसानों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहा है। इस समस्या से जूझ रहे कुछ किसानों ने परंपरागत खेती को छोड़ कुछ नए प्रयोग किए। इनमें कुछ किसानों ने सतावर की खेती अपनाई। कम लागत में दो वर्षो में तैयार होने वाली सतावर की खेती उनके लिए फायदेमंद साबित हो रही है। धीरे-धीरे जिले में इसका रकवा बढ़ रहा है।
किसानों का कहना है कि औषधीय गुणों के कारण बाजार में इसकी मांग भी ज्यादा रहती है, जिस कारण उन्हें बेचने में भी आसानी है।
सतावर की खेती करने वाले किसान मुकेश प्रजापति बताते हैं कि उन्होंने अपने 24 बीघा खेत में सतावर की फसल उगाई। इससे उन्हें बेहतर मुनाफा हुआ। किसान राजकुमार और तनुज कुमार ने भी इसकी खेती की है। उनके खेतों में सतावर की फसल तैयार खड़ी है। राजकुमार कहते हैं कि इस फसल में अत्यधिक बारिश या सूखे का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है। सामान्य सिंचाई होती हैं। इस फसल को मवेशी भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
वहीं, कन्नौज के अन्य किसानों ने तुलसी की खेती को अपनाया और खेती को संवारा। औषधीय गुणों से परिपूर्ण तुलसी अब किसानों की जिंदगी खुशहाल कर रही है। इसकी खेती को अपनाने वाले किसान प्रभाकांत त्रिपाठी बताते हैं कि वह काफी समय से विभिन्न प्रकार की औषधीय फसलें उगा रहे हैं। इसमें अकरकरा, चिकोरी, सतावर, आरटीमिसिया हैं। इनमें सबसे ज्यादा फायदेमंद तुलसी की खेती साबित हुई है।
त्रिपाठी बताते हैं कि मात्र 60 दिन में तैयार होने वाली तुलसी की फसल से उन्हें बेहतर मुनाफा मिल जाता है और लागत भी ज्यादा नहीं लगती। तुलसी का उत्पादन छह-सात क्विंटल प्रति एकड़ होता है। उन्होंने बताया कि वह साल में दो बार तुलसी उगाते हैं। इसमें गेहूं की फसल काटने के बाद खेतों में सामान्य जुताई कर इसका पौधरोपण कर दिया जाता है। उसके दो माह बाद इसे काट लिया जाता है। गर्मी होने के कारण दो से तीन बार सिंचाई करनी पड़ती है। वहीं, बरसात के मौसम में जुलाई में इसका रोपण कराया जाता है, जो सितंबर में तैयार हो जाती है। उसके बाद आलू की फसल आराम से ली जा सकती है।
उन्होंने बताया कि औषधीय गुण होने के कारण बाजार में इसकी भारी मांग है। गुजरात की कई कंपनियां किसानों से पहले से ही खरीद का करार कर लेती हैं और आठ हजार रुपये प्रति क्विंटल की दर पर तुलसी खरीदती हैं। ऐसे में लागत निकालने के बाद मुनाफा अच्छा-खासा होता है।