मुंबई, 17 सितंबर (आईएएनएस)। अपनी जीवन यात्रा में खास मुकाम पाने वाले मकबूल फिदा हुसैन को दुनिया ने जीते जी भले ही कितना भी सराहा हो, लेकिन मृत्यु के महज चार वर्ष बाद ही शायद हुसैन को उनके कद्रदानों ने भुला दिया है।
मुंबई, 17 सितंबर (आईएएनएस)। अपनी जीवन यात्रा में खास मुकाम पाने वाले मकबूल फिदा हुसैन को दुनिया ने जीते जी भले ही कितना भी सराहा हो, लेकिन मृत्यु के महज चार वर्ष बाद ही शायद हुसैन को उनके कद्रदानों ने भुला दिया है।
गुरुवार, 17 सितंबर को हुसैन की जन्मशती के अवसर पर गूगल के डूडल और दुबई में आयोजित एक कला प्रदर्शनी के अतिरिक्त, उनके अपने देश और जन्मभूमि, महाराष्ट्र के सोनापुर जिले में स्थित एक छोटे से गांव पंढारपुर में भी किसी ने उन्हें याद नहीं रखा, जहां वह 1915 में जन्मे थे।
हुसैन के आधिकारिक चरित्र लेखक और लंबे समय से हुसैन के पुराने मित्र, खालिद मोहम्मद ने आईएएनएस को बताया, “मुझे याद है कि 2012 में अपनी पहली पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें काफी याद किया गया लेकिन बेहद दुखद है कि आज उनकी जन्मशती को मनाने के लिए कुछ भी नहीं किया गया। ”
फोर्ब्स पत्रिका द्वारा कभी भारत के पब्लो पिकासो के खिताब से नवाजे गए हुसैन को भारत की जनता भागते घोड़ों, महिलाओं, ऐतिहासिक चरित्रों और हिंदू देवी-देवताओं की नग्न चित्रों के लिए जानती है।
घोड़े हिंदू पौराणाकि कथाओं के दैवीय किरदारों के सबसे पसंदीदा माने जाते रहे हैं जो कि अपनी यौन शक्ति के लिए भी जाने जाते हैं। हुसैन ही पहले कलाकार रहे, जिन्होंने घोड़ों को एक विषय के तौर पर बेहद भावपूर्ण ढंग से इस्तेमाल किया। ऊंची उठी गर्दन के साथ घोड़ों का अद्भुत चित्रण उनके सबसे कीमती और सर्वाधिक मांग वाले संग्रहों में रहा।
हुसैन अपने जीवनकाल में कई महिलाओं से प्रभावित रहे, जिनमें बॉलीवुड की ‘धक-धक गर्ल’ माधुरी दीक्षित से लेकर, भगवान बुद्ध की मां, खूबसूरत रानी महामाया, श्रद्धेय मदर टेरेसा शामिल हैं।
हुसैन का कई विवादों से भी सामना हुआ। देवी देवताओं की नग्न और अर्धनग्न चित्रों के लिए प्रतिरोध पुलिस और न्यायिक कार्रवाइयों का सामना करना पड़ा और आखिरकार उन्हें भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
स्वदेश लौटने की इच्छा मन में दबाए हुसैन की 2011 में लंदन में ही मौत हो गई।
मुस्लिम समाज में जन्मे हुसैन को अपने समाज से भी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जब अपनी फिल्म ‘मीनाक्षी : टेल ऑफ थ्री सिटीज’ में कव्वाली के लिए तिरस्कृत किया गया, जिसमें कथित तौर पर कुछ शब्द ‘कुरान’ से लिए गए थे।
विवादों के बीच भी हुसैन बेहद चर्चा में आ गए जब 2004 में 100 चित्र बनाने के लिए हुसैन ने मुंबई के एक व्यवसायी से 100 करोड़ की डील की। भारत छोड़ने के कारण हुसैन केवल 25 चित्र ही पूरे कर पाए।
हुसैन की अधूरी आधिकारिक जीवनी के लिए मोहम्मद का कहना है कि अब, क्योंकि हुसैन हमारे बीच नहीं हैं, ऐसे में उनकी जीवनी को पूरा करना यथोचित नहीं है।