नई दिल्ली, 10 मई (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को उस धारा की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया जिसमें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के किसी निर्दोष सदस्य को झूठे सबूत के आधार पर दोषी ठहराया जाने और उसे फांसी दिए जाने की स्थिति में झूठे सबूत देने वाले व्यक्ति को अनिवार्य मृत्युदंड की सजा देने का प्रावधान है।
एक जनहित याचिका में एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2) के तहत अनिवार्य मृत्युदंड की वैधता को चुनौती दी गई है जिस पर न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे की पीठ ने नोटिस जारी किया।
याचिका वकील ऋषि मल्होत्रा द्वारा दाखिल की गई है।
वकील ने अदालत से कहा कि यह प्रावधान ‘मनमाना, अनुचित, अन्यायपूर्ण, अनुचित, कठोर, क्रूर है।’
एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(2) के तहत जो व्यक्ति एससी/एसटी नहीं है और वह कोई ऐसा फर्जी सबूत देता है जिससे एससी/एसटी के किसी सदस्य को दोषी ठहराया जाता है और फांसी दी जाती है तो जिस गैर एससी/एस’ी व्यक्ति ने झूठे साक्ष्य मुहैया कराए हैं, उसे मृत्युदंड दिए जाने का प्रावधान है।
याचिकाकर्ता ने अदालत से इस अधिनियम के तहत अनिवार्य मृत्युदंड वाले प्रावधान को समाप्त करने का आग्रह किया।