नई दिल्ली/हैदराबाद, 1 मई (आईएएनएस)। नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप की वजह से माउंट एवरेस्ट के आधार शिविर में फंसी 28 वर्षीय प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ सुरक्षित घर तो पहुंच गई है, लेकिन उस खौफनाक मंजर की यादें अभी भी उसके जेहन में बसी हुई हैं।
हैदराबाद में ‘कॉग्निजेंट टेक्नोलॉजी सॉल्यूशंस’ की कर्मचारी नीलिमा पोदुता शुक्रवार को दिल्ली पहुंच गई।
वह सात सदस्यीय अभियान समूह का हिस्सा थीं, जिसने 20 अप्रैल को ट्रैकिंग शुरू की थी। जब नेपाल में भूकंप आया, उस समय वे 6,400 मीटर की ऊंचाई पर थे।
नीलिमा ने नई दिल्ली स्थित आंध्र भवन में संवाददाताओं को बताया, “उस दिन (25 अप्रैल) हम एवरेस्ट शिविर के नजदीक पहाड़ की चोटी पर थे। वहां कंपन हो रहा था, लेकिन सभी पर्वतारोहियों ने सोचा कि पहाड़ चढ़ने की वजह से चक्कर आ रहे हैं। हमने नहीं सोचा कि यह भूकंप है।”
समूह के सभी सदस्य तंबुओं में लौट आए थे, लेकिन तब भी क्षेत्र में भूकंप की खबर से अनभिज्ञ थे। पूरी संचार प्रणाली नष्ट हो गई थी और उन्हें रेडियो के जरिए भूकंप के बारे में पता चला।
नीलिमा का परिवार यहां चिंतित था, क्योंकि भूकंप के बाद उनसे संपर्क नहीं हो सका था। हालांकि, बाद में बेंगलुरू में टूर आयोजकों ने बताया कि वह और समूह के अन्य सदस्य सुरक्षित हैं।
नीलिमा ने कहा, “हमने भूकंप बाद के झटके महसूस किए और उनमें से कुछ बहुत शक्तिशाली थे।
नीलिमा ने एवरेस्ट से नीचे उतरने के अनुभव को याद करते हुए कहा, “हम बहुत तेजी से नीचे उतरे। हम प्रतिदिन छह से आठ घंटे ट्रैकिंग कर रहे थे, लेकिन इस बार हमने अधिक दूरी तय की।”
उन्हें पता चला कि जिन तंबुओं में वे ठहरे थे, उनमें से कई गायब हो गए हैं। परिवहन प्रणाली बुरी तरह नष्ट हो गई थी। पुल टूट गए थे और हमें वैकल्पिक मार्गो के जरिए सफर पूरा करना पड़ा।
पर्वतारोही इतने डरे हुए थे कि वे नीचे नहीं देख रहे थे।
चार दिनों की कष्टदायक यात्रा के बाद वे लुक्ला गांव पहुंचे और फिर वहां से पूर्वी नेपाल के तेनजिंग हवाईअड्डे पहुंचे। नीलिमा ने कहा, “हमने भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टरों को लोगों को बचाते हुए देखा। हम वापस अपने तंबू भागे और अपना सामाना इकट्ठा कर कतार में खड़े हो गए ताकि हमें काठमांडू पहुंचाया जा सके। काठमांडू पहुंचने के बाद हमारे समूह ने दिल्ली की उड़ान ली और घर सुरक्षित पहुंचे।”