नेताओं के कुर्तों की ही तरह सफेद, नेताओं की कार एम्बैसडर. कभी यह भारत की शान हुआ करती थी, फिर सियासी पहचान बन गई. या तो नेताओं की सवारी या टैक्सी. लेकिन अब भारत में कोई एम्बैसडर नहीं चलेगी.
एम्बैसडर कार बनाने वाली हिन्दुस्तान मोटर्स ने रविवार को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को इस बात की जानकारी दे दी कि उन्होंने पश्चिम बंगाल के उत्तरपाड़ा में इस कार के निर्माण को फिलहाल रोक दिया है. कंपनी के प्रवक्ता राजीव सक्सेना ने बताया, “कम उत्पादन, घटना अनुशासन, पैसों की कमी, मांग में कमी, ये सब बहुत भारी पड़ रहे थे और इन्हीं वजहों से उत्पादन रोक दिया गया.”
भारत में पहली कार एम्बैसडर ही बनी थी. इसकी शुरुआत 1957 में हुई थी और इसकी डिजाइन में ज्यादा बदलाव नहीं आया. पिछले वित्तीय वर्ष 2013-14 में सिर्फ 2,200 एम्बैसडर कारें ही बिकीं. पश्चिम बंगाल के प्लांट में 2500 कर्मचारी काम करते हैं और अभी पक्का नहीं है कि उन्हें काम पर रखा जाएगा या नहीं.
हिन्दुस्तान मोटर्स लिमिटेड ने एक बयान जारी कर कहा कि उत्तरपाड़ा प्लांट में अगली सूचना तक के लिए काम बंद कर दिया गया है. भारत में 1980 के दशक में मारुति सुजूकी की कार बननी शुरू हुई और उसके बाद से ही एम्बैसडर की पूछ घटती चली गई. बाद में 1990 के दशक में विदेशी कारों ने भारत में पांव पसारा और तब इसकी हालत और खराब हो गई.
हालांकि राजनेताओं के लिए यह फिर भी पहली पसंद बनी रही. सोनिया गांधी अभी भी एम्बैसडर कार से ही चलती हैं. हालांकि प्रधानमंत्री के लिए अब जर्मन बीएमडब्ल्यू कारें तैयार कराई गई हैं. दूसरी कारों के मुकाबले एम्बैसडर ज्यादा महंगी नहीं. अभी भी नई कार की कीमत करीब पांच लाख रुपये हैं.
कोलकाता में एम्बैसडर कार का खास महत्व है, जहां यह पीले रंग की टैक्सी के तौर पर चलती है. करीब 10 साल से अपनी पीली टैक्सी चला रहे अशोक कुमार सिंह का कहना है, “यह तो मेरी रोजी रोटी है.” उनका कहना है, “हम तो एम्बैसडर के बगैर इस शहर की कल्पना ही नहीं कर सकते.”