नई दिल्ली: कई मानवाधिकार संगठनों और वकीलों ने प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ्तारी के लिए गुजरात पुलिस और सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की है. सीतलवाड़ ने 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका की जांच की मांग की थी.
अधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने शनिवार 25 जून को भारतीय अधिकारियों द्वारा सीतलवाड़ की हिरासत की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया.
इसमें कहा गया, ‘प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को भारतीय अधिकारियों द्वारा हिरासत में लेना उन लोगों के खिलाफ सीधा प्रतिशोध है, जो मानवाधिकारों के लिए सवाल उठाने की हिम्मत करते हैं. यह सिविल सोसायटी को एक डरावना संदेश देता है और देश में असहमति के लिए स्थान को और कम करता है.’इसमें आगे कहा गया है, ‘मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को उनके वैध मानवाधिकार कार्यों के लिए निशाना बनाना अस्वीकार्य है. भारतीय अधिकारियों को तुरंत तीस्ता सीतलवाड़ को रिहा करना चाहिए और भारत में सिविल सोसायटी व मानवाधिकार रक्षकों के उत्पीड़न को समाप्त करना चाहिए.’
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेंस एसोसिएशन (एआईडीडब्ल्यू) ने भी गुजरात एटीएस द्वारा तीस्ता की गिरफ्तारी की निंदा की है.
एआईडीडब्ल्यूए ने एक बयान में कहा, ‘जकिया जाफरी, जिनके पति एहसान जाफरी को गुजरात दंगों में बेरहमी से मार दिया गया था, द्वारा दायर अपील को खारिज किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के दुर्भाग्यपूर्ण फैसले के बाद गुजरात पुलिस ने जकिया के साथ चट्टान की तरह खड़ी रहीं तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तार करने में बिल्कुल समय नहीं गंवाया. उनके इस कार्य और अन्य अनुकरणीय साहसी कार्यों के लिए उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है.’
इसमें आगे मांग की गई है, ‘उनके खिलाफ दर्ज मामले को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए और उन्हें प्रताड़ित करना बंद करना चाहिए.’
एक बयान में लेफ्टवर्ड बुक्स ने कहा है, ‘भारत को जकिया जाफरी जैसे साहस और दृढ़ता वाले और भी नागरिक एवं तीस्ता सीतलवाड़ जैसी योग्यता वाले और भी मानवाधिकार कार्यकर्ता चाहिए. हम उनके साथ खड़े हैं.’
कई वकीलों ने भी अलग-अलग सुप्रीम कोर्ट की निंदा की है.बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने जकिया जाफरी की याचिका को खारिज करते हुए कहा था, ‘प्रक्रिया के इस तरह के दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कटघरे में खड़ा करने की जरूरत है और कानून के मुताबिक कार्रवाई करने की जरूरत है.’
संविधान के मामलों के वकील और कानून के जानकार गौतम भाटिया ने भी अपने ट्वीट में तंज कसते हुए लिखा है, ‘भारतीय सुप्रीम कोर्ट का वैश्विक न्याय-शास्त्र में योगदान यह है कि उसने व्यक्ति बनाम राज्य के मामले का फैसला, व्यक्ति को राज्य के हाथों गिरफ्तार करवाकर किया है. यह एक उल्लेखनीय संवैधानिक नवाचार है.’
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 24 जून को 2022 के गुजरात दंगों के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 64 लोगों को विशेष जांच दल द्वारा दी क्लीनचिट को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी.
याचिका जकिया जाफरी द्वारा दायर की गई थी, जिनके पति की 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हत्या कर दी गई थी.
शीर्ष अदालत के फैसले के बाद एक दिन से भी कम समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मामले को आगे तक ले जाने वाली कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को गुजरात पुलिस के आतंकवाद विरोधी दस्त (एटीएस) द्वारा उनके मुंबई स्थित घर से उठा लिया गया. बाद में उन्हें एक स्थानीय पुलिस थाने में ले जाया गया और फिर अहमदाबाद ले जाया गया.गुजरात पुलिस ने सीतलवाड़ को कथित रूप से जालसाजी करने और झूठे सबूत गढ़ने के साथ अन्य आरोपों में हिरासत में लिया है.
एफआईआर में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों धारा 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के रूप में उपयोग करना), 120बी (आपराधिक साजिश), 194 (गंभीर अपराध का दोष सिद्ध करने के इरादे से झूठे सबूत देना या गढ़ना) और 211 (घायल करने के लिए किए गए अपराध का झूठा आरोप) का जिक्र है.
इस बीच, सूत्रों के अनुसार सीतलवाड़ को अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने से पहले रूटीन स्वास्थ्य जांच के लिए अहमदाबाद के एसवी अस्पताल ले जाया गया.सीतलवाड़ के साथ गुजरात के दो आईपीएस अधिकारी – संजीव भट्ट, जो पहले से ही एक अन्य मामले में जेल में हैं और आरबी श्रीकुमार – भी आरोपी हैं.खबरों के मुताबिक, पूर्व पुलिस अधिकारी आरबी श्रीकुमार को 25 जून शनिवार की दोपहर को गांधीनगर स्थित उनके घर से गिरफ्तार कर था और क्राइम ब्रांच के मुख्यालय ले जाया गया था.