एफडीआई के तारतम्य में यह भ्रम फैलाया गया है कि इससे रोजगार के एक करोड नए़ अवसर पैदा होंगे। 40 लाख नौकरियां अकेली वाल्मार्ट देगी। वाल्मार्ट की एक दुकान में औसत 214 कर्मचारी होते हैं। यदि वाल्मार्ट जैसा कि दावा कर रहा है कि वह 40 लाख लोगों को रोजगार देगा तो उसे भारत में 86 हजार बड़े खुदरा सामान के भण्डार खोलने होंगे? जबकि खुदरा की जो वाल्मार्ट, केअरफोर, मेटो और टेस्को जेसी बड़ी कंपनियां हैं, उन सबके मिलाकर दुनिया में 34,180 भण्डार ही हैं। ऐसे में वाल्मार्ट का नौकरी देने का दावा निवेश के लिए वातावरण बनाने के नजरिये से एक छलावा भर है। इस परिप्रेक्ष्य में उस नकारात्मक स्थिति को भी सामने लाने की जरुरत है, जो बड़ी मात्रा में रोजगार छीनेगी। एक सर्वे के अनुसार जिस क्षेत्र में कंपनियां दुकानें खोलेंगी, वहां एक नौकरी देने के बदले में असंगठित क्षेत्र के 17 लोगों का रोजगार नेस्तनाबूद भी करेंगी। तय है, ये मायावी कंपनियां घरेलू खुदरा व्यापार को ही नहीं निगलेंगी, तमाम जिंदगियां भी लील जाएंगी। यह स्थिति बिल्ली के पिंजरे में चूहा छोड़ देने जैसी है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल की निर्णय क्षमता को दाद देनी होगी कि वह आम लोगों के हित में ऐतिहासिक फैसले लेने में कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं। सस्ती बिजली और मुफ्त पानी के बाद आप ने खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश पर रोक लगाकर केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार को करारा झटका दिया है। यह झटका दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी है, उन्होंने दिल्ली में एफडीआई के भण्डार खोलने की इजाजत दी थी। इसी फैसले को केजरीवाल सरकार ने पलटा है। केजरीवाल ने ‘डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्टियल पॉलिसी एण्ड प्रमोशन‘ को भी इस मकसद पूर्ति के लिए पत्र लिख दिया है। गौरतलब है कि आप अपने घोषणा पत्र में रिटेल में एफडीआई का विरोध कर चुका है। इस नीति सम्मत फैसले से दिल्ली अब एफडीआई रोकने वाला पहला राज्य बन गया है। हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एफडीआई का विरोध करते हुए ही संप्रग-2 से समर्थन वापस लिया था।देश में इस समय राजनैतिक दल और राजनेता आम आदमी पार्टी से कदमताल मिलाने की होड़ में लगे है। जाहिर है यदि लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस पराजित होती है तो कई कांग्रेस शासित राज्य भी एफडीआई के विरोध में आ जाएंगे, क्योंकि एफडीआई का विरोध जताकर अरविंद केजरीवाल ने साफ कर दिया है कि एफडीआई आम आदमी के मुंह से निवाला छीनने का काम करने वाला फैसला है। इस लिहाज से आम आदमी के कल्याण का हित साधने वाली सरकारों को जरूरी हो जाता है कि वह एफडीआई के विरोध में खड़ी दिखाई दे।