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 उर्दू और अरबी में भी लिखी गई है रामायण | dharmpath.com

Thursday , 17 April 2025

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उर्दू और अरबी में भी लिखी गई है रामायण

18_04_2013-18ramayanभारत: मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जीवनगाथा अवधी व संस्कृत के अलावा कई भारतीय भाषाओं सहित अरबी में भी लिखी गई है। इसके अरबी एवं उर्दू संस्करण हाल ही में सामने आए हैं।

अरबी में लिखी गई रामायण का लोकार्पण कुछ माह पहले ही जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान हुआ। अबू धाबी अथॉरिटी फॉर कल्चरल एंड हेरिटेज की साहित्यिक शाखा कलीमा द्वारा प्रकाशित यह रामायण लेबनान मूल केअरबी विद्वान वादी अल-बुस्तानी ने करीब 65 साल पहले लिखी थी। बुस्तानी महात्मा गांधी के अंहिसा आंदोलन से प्रभावित होकर उनसे मिलने भारत आए तो भारतीय समाज के आकर्षण में बंधकर कुछ दिनों के लिए यहीं रुक गए। इसी दौरान मौलाना अबुल कलाम आजाद की प्रेरणा से उन्होंने भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ रामायण का अरबी भाषा में पद्यात्मक लेखन शुरू किया। भारत से जाने केबावजूद उन्होंने यह लेखन जारी रखा और उत्तरी इस्त्रायल के हाइफा शहर में रहते हुए इस रामायण का लेखन पूरा किया।

बुस्तानी ने यह रामायण लिखकर मौलाना आजाद केपास भेज दी। लेकिन उस दौरान देश की आजादी एवं बंटवारे की मुश्किलों में उलझे मौलाना आजाद इसका प्रकाशन नहीं करवा सके। मौलाना आजाद के निधन के बाद उनके संपूर्ण साहित्य के साथ अरबी रामायण की पांडुलिपि भी जामिया मिलिया विश्वविद्यालय स्थित भारत अरब सांस्कृतिक केंद्र को दे दी गई। विश्वविद्यालय केपूर्व उपकुलपति शाहिद मेहंदी बताते हैं कि वर्षो से रखी इस पांडुलिपि का संपादन भारत अरब सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक प्रोफेसर जकीरुर्रहमान ने किया है, जिसे भारतीय सांस्कृतिकसंबंध परिषद के सहयोग से कलीमा ने कुछ माह पहले ही प्रकाशित किया है। करीब 290 पृष्ठों की इस अरबी रामायण के आवरण पृष्ठ पर भगवान राम का धनुष एवं तीरों से भरे तरकश लिए हुए वीरोचित मुद्रा का चिद्द प्रकाशित किया गया है।

इसी प्रकार उर्दू में लिखी एक रामायण भी करीब डेढ़ वर्ष पहले तब मिली, जब वाराणसी के तुलसी अखाड़े से चोरी गई रामचरित मानस की पांडुलिपियों को ढूंढा जा रहा था। तुलसी अखाड़े से जुड़े डॉ. विजयनाथ मिश्र के अनुसार यह दुर्लभ रामायण दिल्ली केहौजखास स्थित पुरानी पुस्तकों की एक दुकान से कश्मीर निवासी पुषकरनाथतर्मठ को मिली थी, जिसे उन्होंने तुलसी अखाड़े को दान कर दिया है। सन् 1919 में लाहौर हॉफटेन प्रेस से प्रकाशित यह रामायण वास्तव में तुलसीकृत रामचरित मानस का ही उर्दू लिपि में रूपांतरण है। इसकेलेखक एवं संपादक गौरव भगत महात्मा शिवव्रतलाल जी हैं। तुलसी अखाड़े से जुड़े डॉ.विजयनाथ मिश्र केअनुसार इस उर्दू रामायण में चार आकर्षणरंगीन चिद्द भी हैं। इनमें से एक राम राज्याभिषेकका चिद्द रामायण केआवरण पृष्ठ पर प्रकाशित है। डॉ. मिश्र केअनुसार वह इस उर्दू रामायण को पुन: प्रकाशित करवाने की योजना भी बना रहे हैं।

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