लखनऊ, 1 जून (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल बेहद ही बुरा है। उप्र में आम जनता को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के नाम पर करोड़ों रुपये फूंकने वाली सरकार के लिए यह खतरे की घंटी है, क्योंकि सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी में काफी चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। आंकड़ों के मुताबिक, उप्र में वर्तमान में औसतन 28 गावों के बीच एक प्राइमरी हेल्थ सेंटर है।
लखनऊ, 1 जून (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल बेहद ही बुरा है। उप्र में आम जनता को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के नाम पर करोड़ों रुपये फूंकने वाली सरकार के लिए यह खतरे की घंटी है, क्योंकि सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी में काफी चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। आंकड़ों के मुताबिक, उप्र में वर्तमान में औसतन 28 गावों के बीच एक प्राइमरी हेल्थ सेंटर है।
सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा की ओर से दायर आरटीआई में यह खुलासा हुआ है। शर्मा ने आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत के दौरान इसकी जानकारी दी।
उर्वशी ने बताया, “सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, उप्र में स्वास्थ्य सेवाओं का स्थिति काफी भयावह है। सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी सामने आई है कि वर्तमान में 28 गांवों व औसतन लगभग 44597 लोगों के बीच केवल एक प्राइमरी हेल्थ सेंटर है। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उप्र में लोगों के स्वास्थ्य के साथ किस तरह का खिलवाड़ सरकार की ओर से किया जा रहा है।”
उन्होंने बताया कि उप्र की जनसंख्या इस समय लगभग 20 करोड़ है। उप्र में कुल आबादी का लगभग 16़12 फीसदी यानी 25133011 जनसंख्या सिर्फ बच्चों की है। इसमें भी ग्रामीण इलाकों में शून्य से 6 वर्ष के भीतर औसतन 1000 बच्चों पर 906 लड़कियां हैं।
उर्वशी ने कहा, “इसका मतलब यह है कि उप्र के ग्रामीण इलाकों में लगभग 13186260 बच्चे हैं और 11946751 बच्चियां हैं। बच्चों के मामले में इतनी बड़ी आबादी वाले उप्र में प्राइमरी स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति काफी दयनीय है।”
उर्वशी शर्मा कहती हैं, “आजादी के 68 वर्षो के बाद भी स्वास्थ्य सेवाओं की हालत इतनी बदहाल होगी, इसका भी अंदाजा नहीं था। आप सोचिए कि सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य में एक गांव में एक अस्पताल भी नहीं है।”
उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, मगर सच्चाई कुछ और है। सबसे दुखद यह है कि ग्रामीण इलाकों में बच्चों को स्वास्थ्य से जुड़ी बुनियादी सुविधाएं दिए जाने के नाम पर करोड़ों रुपये की लूट-खसोट होती है।