वन्यजीव और पर्यावरण प्रेमियों की दुनिया में ‘सारस राजधानी’ के नाम से मशहूर उत्तर प्रदेश अब सारस और वेटलैण्ड के संरक्षण के लिए ठोस रणनीति तैयार करने की पहल करने जा रहा है। इसके तहत सारस संरक्षण समिति, उ.प्र. दो और तीन फरवरी को सैफई, इटावा में सारस पक्षी और वेटलैण्ड संरक्षण पर अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कर रही है।
सारस क्रेन उड़ने वाले पक्षियों में सबसे अधिक ऊंचाई के होते हैं। ये लुप्तप्राय 11 प्रजातियां में से एक हैं। दरअसल, देश में क्रेन की 6 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें सारस सबसे अधिक लोकप्रिय है। सारस क्रेन भारत के अलावा नेपाल के तराई क्षेत्रों, म्यांमार के कुछ क्षेत्रों, कंबोडिया एवं वियतनाम के फ्लड प्लेन क्षेत्रों और उत्तरी आस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं।
भारत में सारस क्रेन उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, तथा उत्तरपूर्वी महाराष्ट्र में पाए जाते हैं। पक्षियों की यह प्रजाति पश्चिमी बंगाल एवं उड़ीसा से विलुप्त हो गई है। उत्तर प्रदेश वन विभाग में सारस पक्षी के संरक्षण के लिए वर्ष 2006 में सारस संरक्षण समिति का गठन किया गया।
बीते दो दशकों में सारस क्रेन के अध्ययन, मॉनीटरिंग और संरक्षण के प्रयास उन सभी देशों में किए गए हैं, जहां यह पाए जाते हैं, लेकिन ये असरदार साबित नहीं हो सकी है।
मुख्य वन संरक्षक और नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान लखनऊ के निदेशक अनुपम गुप्ता ने आईपीएन को बताया कि इस संगोष्ठी में सारस के लिए महत्वपूर्ण देश जैसे भारत, नेपाल, म्यांमार, वियतनाम और कंबोडिया के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञ भाग लेंगे।
इनकी अतिरिक्त संगोष्ठी में वेटलैण्ड संरक्षण के लिए विभिन्न देशों के विशेषज्ञ, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, इण्टर नेशनल क्रेन फाउण्डेशन, वाइल्ड फाउल ट्रस्ट के विशेषज्ञों व प्रतिनिधि भी भाग लेंगे। इसके साथ ही देश के विभिन्न राज्यां में जहां सारस पाए जाते हैं, वहां के मुख्य वन्य जीव प्रतिपालकों को भी संगोष्ठी में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है।
सारस संरक्षण समिति उ.प्र. ने सारस क्रेन के विषय में एक कॉफी टेबल बुक ‘क्रेन: ए पिक्टोरियल लाइफ हिस्ट्री’ तैयार कराई है, जिसका विमोचन भी संगोष्ठी के मध्य में होगा।