प्रदेश के दुग्ध विकास मंत्री राममूर्ति वर्मा का कहना है कि ग्राम स्तर पर पशुपालन एवं दुग्ध व्यवसाय कृषि के सह व्यवसाय के रूप में प्रचलित है। इसमें 70 से 80 प्रतिशत भूमिहीन, लघु एवं सीमांत कृषकों की सहभागिता है और इस कार्य में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी है। ग्राम स्तर पर दुग्ध समितियां एवं दुग्ध उत्पादन स्वरोजगार के अवसर के अवसर प्रदान करने का सशक्त माध्यम है।
उन्होंने बताया कि प्रदेश के 97,941 ग्रामों में से वर्तमान में 11,500 गांवों में दुग्ध समितियां या दुग्ध समूह वर्तमान में कार्यरत हैं, जिनमें स्वरोजगार के लिए गाय एवं भैंस पालन कर दुग्ध उत्पादन एवं विक्रय महत्वपूर्ण सहरोजगार के रूप में अपनाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि दुग्ध उत्पादकों को उनके दूध का सही मूल्य दिलाने के लिए समिति स्तर पर ही पारदर्शी दुग्ध परीक्षण/नाप तौल एवं तत्काल दूध की कीमत की तुरंत जानकारी के लिए 6,346 ऑटोमेटिक मिल्क कलेक्शन यूनिट (एएमसीयू) स्थापित कराए गए हैं।
यही नहीं, दुग्ध समिति स्तर पर उपार्जित दूध की गुणवत्ता संरक्षित करने के लिए 10 समितियों के क्लस्टर में बल्क मिल्क कूलर्स (बीएमसी) की स्थापना की जा रही है। जिनमें से अभी तक कुल 515 बीएमसी स्थापित किए जा चुके हैं।