अब पूर्व मंत्री ने बसपा मे सेंध मारकर पत्नी शकुंतला को हमीरपुर विधानसभा से चुनाव लड़ाने का प्रयास शुरू कर दिया है।
उप्र मंे जब पहली बार बीएसपी की सरकार बनी थी, तब निषाद तिंदवारी क्षेत्र से पहली बार एमएलए बनकर मायावती सरकार में मंत्री बने थे। उसके बाद उन्होंने सपा का दामन थाम लिया, और पिछली सपा की सरकार में वह कैबिनेट मंत्री भी रहे।
बात तब बिगड़नी शुरू हुई जब विशम्भर प्रसाद साल 2012 के विधानसभा चुनाव में तिंदवारी सीट से चुनाव हार गए और उनके धुर विरोधी ठाकुर दलजीत सिंह ने उनकी सीट पर कब्जा कर लिया। अपने विरोधी से चुनाव हारे निषाद ने तत्काल लखनऊ पहुंचकर अपनी व्यथा सपा मुखिया को बताई।
इस पर मुलायम सिंह ने निषाद को वर्ष 2012 के मंत्री मंडल में शामिल करने का भरोसा भी दिया था। लेकिन अचानक बदले राजनीतिक परि²श्य एवं प्रदेश सपा की कमान अखिलेश के हाथों में पहुंचते ही निषाद का वह सपना भी चकना-चूर हो गया।
सरकार के व्यवहार से आहत पूर्व मंत्री एक बार फिर सपा मुखिया मुलायम सिंह के दरबार में हाजिरी लगाई, और विधानसभा चुनाव के 02 साल बाद राज्यसभा के रास्ते सांसद बनकर दिल्ली जा पहुंचे।
उन्हंे आशा ही नहीं, पूरा विश्वास था कि प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव साल 2017 के विधानसभा चुनाव मे उनका ख्याल रखेंगे और वह अपनी पत्नी शकुंतला को तिंदवारी से विधानसभा का चुनाव जितवाकर विधायक बनवाने मंे सफल होंगे। लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा।
सपा की विधानसभा चुनाव 2017 के लिए जारी पार्टी प्रत्याशियों की सूची में उनका नाम नहीं था। तभी उन्होंने विचार मंथन शुरू कर दिया। सूत्रों की मानें तो समाजवादी पार्टी से आहत पूर्व मंत्री ने एक बार पुन: बसपा में घुसपैठ कर अपनी पत्नी शकुंतला के लिए हमीरपुर विधानसभा से टिकट झटकने का प्रयास शुरू कर दिया है।