इस रिपोर्ट के बारे में एडीआर के मुख्य संयोजक संजय सिंह ने बताया, “संभावित प्रत्याशियों व पार्टी पदाधिकारियों में से 69 फीसदी ने नोटबंदी को चुनावी खर्च पर बेअसर करार दिया, जबकि 65 फीसदी की मानें तो इससे वोटरों की खरीद-फरोख्त पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सर्वे में शामिल 80 फीसदी लोगों ने हालांकि माना है कि नोटबंदी से चुनाव प्रचार में काफी कठिनाई होगी।”
संजय ने कहा, “सर्वे में चुनाव सामग्री का कारोबार करने वाले 70 फीसदी व्यापारियों का कहना है कि नोटबंदी के चलते ग्राहक कम हुए हैं। कैशलेस व्यवस्था लागू किए जाने और नंबर एक में भुगतान पर जोर के चलते 60 फीसदी ने माना है कि इससे उनके व्यापार पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जबकि 30 फीसदी का कहना है कि थोड़ा बहुत असर पड़ेगा।”
उन्होंने कहा, “लखनऊ, कानुपर झांसी सहित उप्र 10 मंडलों की 30 विधानसभा सीटों पर सर्वे में सामने आया कि बड़ी तादाद में चुनावी पैसा जनधन खातों में जमा कराया गया है। प्रत्याशियों व पार्टियों ने नोटबंदी के साथ ही तमाम कालाधन चुनाव के लिए खर्च के रूप में एडवांस में दे दिया है। राजनैतिक दलों और संभावित प्रत्याशियों की गाड़ियां, कीमती सामान और मोबाइल आदि की खरीद भी हो चुकी है।”