लखनऊ , 26 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर एक तरफ जहां अन्य पार्टियां अपने को चुस्त-दुरस्त करने में जुटी हैं, वहीं दूसरी तरफ टिकट बंटवारे को लेकर सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) के भीतर एक बार फिर घमासान मच गया है।
सपा के विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रविवार को अचानक पार्टी मुखिया मुलायम सिंह को 403 उम्मीदवारों की अपनी सूची सौंप दी।
हालांकि शिवपाल यादव ने अखिलेश के इस कदम की जानकारी मिलने के बाद प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने ट्विट करते हुए कहा है कि पार्टी में अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
विवाद की शुरुआत रविवार को उस समय हुई, जब प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल ने बलिया व मथुरा जिला कमेटियों को भंग कर दी और पार्टी मुखिया ने गायत्री प्रसाद प्रजापति को राष्ट्रीय सचिव बना दिया। अखिलेश ने भी शाम होते-होते मुलायम को टिकट बांटने के लिए अपने 403 प्रत्याशियों की सूची सौंप दी।
विवाद उस समय चरम पर आया, जब शिवपाल ने ट्वीट कर कहा कि टिकट पहले से बांटे जा रहे हैं और पार्टी में अनुशानहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
इसी संदर्भ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रविवार को पार्टी मुखिया से मुलाकात की थी और विधानसभा चुनाव 2017 के लिए 403 उम्मीदवारों की सूची सौंपी।
सपा सूत्रों के अनुसार, अखिलेश ने कहा है कि जब चुनाव उनके काम और उनके नाम पर लड़ा जा रहा है, तो फिर टिकट बांटने का अधिकार उनका ही होना चाहिए।
सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री ने अपने स्तर पर एक आंतरिक सर्वे कराया था। इसके आधार पर जीत सकने वाले उम्मीदवारों के नामों की सूची तैयार की गई है।
सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने विधानसभा चुनाव 2017 को देखते हुए टिकट बांटने की प्रक्रिया काफी पहले शुरू कर दी थी। सबसे पहले हारी हुई सीटों पर 141 उम्मीदवारों की घोषणा की गई। अब तक करीब 175 उम्मीदवारों की घोषणा की जा चुकी है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पिछले काफी समय से पार्टी विधायकों के साथ बैठक कर रहे थे। उन्होंने बीते शुक्रवार व शनिवार को भी विधायकों के साथ बैठक की थी और विधायकों को चुनाव प्रचार में जुटने को कहा था।
प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल ने ट्वीट कर कहा है कि पार्टी में अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। टिकट का बंटवारा जीत के आधार पर होगा। पार्टी ने टिकट बांटने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। टिकट बांटने का अधिकार संसदीय बोर्ड के पास है और अंतिम फैसला लेने का अधिकार ‘नेता जी’ के पास है।