नई दिल्ली- उत्तराखंड में पिछले पांच वर्षों के भाजपा शासन के दौरान ‘नफ़रत भरी भीड़ की हिंसा (मॉब लिंचिंग)’ की कई घटनाओं की ओर इशारा करते हुए वरिष्ठ वकीलों और कानूनी पेशेवरों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लिखे एक खुले पत्र में आरोप लगाया है कि ‘राज्य सरकार ऐसी घटनाओं में समान रूप से कानून लागू करती प्रतीत नहीं होती है.’
उन्होंने कहा है, ‘इसके बजाय एक ऐसा पैटर्न दिखाई देता है जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी की विचारधारा के करीबी लोगों का समर्थन किया जाता है.’
पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले 42 हस्ताक्षरकर्ताओं ने आगाह किया कि आरोपियों को संरक्षण प्रदान करने वाले ‘ऐसे कृत्यों का प्रभाव आगे नफरत व हिंसा को और प्रोत्साहित करेगा’ जिसके स्थायी प्रभाव नागरिकों के जीवन व अधिकारों और राज्य के भविष्य पर भी दिखाई देंगे.
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में वरिष्ठ वकील अंजना प्रकाश, संजय पारिख, प्रशांत भूषण, एनडी पांचोली, राजू रामचंद्रन, कामिनी जायसवाल, गोपाल शंकर नारायण और चंद्र उदय सिंह भी शामिल हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे समय में जब सरकार समान नागरिक संहिता लाने के संबंध में कई सार्वजनिक बयान दे रही है, तो ‘यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि सरकार संविधान के अनुसार आपराधिक संहिता एक समान रूप से लागू करे.’
उन्होंने कहा, ‘अन्यथा इस तरह के अन्य अभ्यास नागरिकों के एक समूह को उकसाने का उद्देश्य प्रतीत होते हैं, और समान अधिकारों को सम्मान देना सुनिश्चित नहीं करते हैं.’
विभिन्न अखबारों और न्यूज पोर्टल में छपे 19 लेखों, जिनमें द वायर के 4 लेख भी शामिल हैं, का हवाला देते हुए पत्र में ऐसे महत्वपूर्ण उदाहरणों की ओर इशारा किया गया है जहां उत्तराखंड में कानून को समान रूप से लागू करने का स्पष्ट अभाव था.