नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा को दिए गए तीसरे सेवा विस्तार के बारे में केंद्र से सवाल किया और आश्चर्य जताया कि क्या ‘कोई एक व्यक्ति इतना जरूरी हो सकता है.’
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता से सवाल किया, ‘क्या संगठन में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है जो उनका काम कर सके? क्या एक व्यक्ति इतना जरूरी हो सकता है?’
पीठ ने पूछा, ‘आपके मुताबिक, ई़डी में कोई और व्यक्ति नहीं है जो सक्षम हो? 2023 के बाद एजेंसी का क्या होगा, जब वे रिटायर हो जाएंगे?’
पीठ में जस्टिस विक्रम नाथ और संजय करोल भी शामिल हैं.
शीर्ष अदालत मिश्रा को 2021 के एक आदेश के बावजूद दिए गए सेवा विस्तार को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समूह पर सुनवाई कर रही है. उक्त आदेश में शीर्ष अदालत ने ही कहा था कि 1984 बैच के भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी को नवंबर 2021 से आगे सेवा विस्तार नहीं मिलना चाहिए.
मामले पर पीठ द्वारा सवालों की झड़ी तब लग गई जब एसजी मेहता ने कहा कि ग्लोबल टेरर फाइनेंसिंग वॉचडॉग- फायनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) द्वारा भारत के पीअर रिव्यू से पहले नेतृत्व में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए विस्तार की आवश्यकता थी. यह रिव्यू इस साल आयोजित होने की उम्मीद है.
मेहता ने कहा कि सेवा विस्तार एक विशेष व्यक्ति को पसंद करने के चलते नहीं दिया गया था, बल्कि एफएटीएफ की समीक्षा के दौरान देश के प्रदर्शन को लेकर चिंता थी, जहां शीर्ष पर बैठे शख्स के लिए मिश्रा जैसे अनुभवी व्यक्ति की जरूरत थी.
मेहता ने कहा, ‘यह किसी एक व्यक्ति विशेष के लिए प्रेम नहीं था, बल्कि मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के सीमा पार निहितार्थ हैं. एफएटीएफ का पीअर रिव्यू 10 वर्षों में एक बार होता है. एफएटीएफ के साथ बातचीत करने वाला व्यक्ति उनसे तालमेल बिठाने के उपयुक्त होता है. जब आप विश्व निकायों के साथ काम कर रहे हों तो कभी-कभी निरंतरता की आवश्यकता होती है. हमारे देश का प्रदर्शन (समीक्षा में) सर्वोपरि था. यह हमारा मसला नहीं है कि वह जरूरी हैं.’
हालांकि , पीठ ने कहा कि वह केवल अपने पहले के आदेश के उल्लंघन को लेकर चिंतित है. इसने कहा, ‘इस अदालत ने साफ तौर पर कहा था कि यदि विस्तार दिया जाना है तो यह छोटी अवधि के लिए होना चाहिए. इस अदालत के समक्ष प्रतिवादी (मिश्रा) के मामले में हमने स्पष्ट किया था कि आगे कोई विस्तार नहीं दिया जाना चाहिए. आपको इस तर्क पर खरा उतरना होगा.’
मेहता ने तर्क दिया कि विस्तार देने का निर्णय केंद्र सरकार का नहीं, बल्कि सीवीसी का है जिसे अपने कामकाज में उच्च स्तर की स्वतंत्रता प्राप्त है.
जब मेहता की दलीलें अनिर्णायक रहीं, तो अदालत ने सोमवार को मामले की अगली सुनवाई तय कर दी.