भगवान भोलेनाथ के द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से एक ज्योर्तिलिंग है केदरनाथ जो उत्तराखंड की देव भूमि में मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग को आधा ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है क्योंकि इसका एक भाग भारत के पड़ोसी राज्य नेपाल के काठमांडू में स्थित है। काठमांडू स्थिति केदारनाथ का भाग पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है।
पशुपतिनाथ के विषय में मान्यता है कि महाभारत युद्घ में पाण्डवों द्वारा अपने गुरूओं एवं सगे-संबंधियों का वध किये जाने से भगवान भोलेनाथ पाण्डवों से नाराज हो गये। भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पाण्डव शिव जी को मनाने चल पड़े। गुप्त काशी में पाण्डवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलीन हो गये और उस स्थान पर पहुंच गये जहां पर वर्तमान में केदारनाथ स्थिति है।
शिव जी का पीछा करते हुए पाण्डव केदारनाथ पहुंच गये। इस स्थान पर पाण्डवों को आया हुए देखकर भगवान शिव ने एक भैंसे का रूप धारण किया और इस क्षेत्र में चर रहे भैसों के झुण्ड में शामिल हो गये। पाण्डवों ने भैसों के झुण्ड में भी शिव जी को पहचान लिया तब शिव जी भैंस के रूप में ही भूमि समाने लगे। भीम ने भैंस को कसकर पकड़ लिया।
भगवान शिव प्रकट हुए और पाण्डवों को पापों से मुक्त कर दिया। इस बीच भैंस बने शिव जी का सिर काठमांडू स्थित पशुपात नाथ में पहुंच गया। इसलिए केदारनाथ और पशुपतिनाथ को मिलाकर एक ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है। केदरनाथ में भैंस के पीठ रूप में शिवलिंग की पूजा होती है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति बद्रीनाथ और केदारनाथ का दर्शन करता है वह जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
नेपाल स्थित पशुपतिनाथ के विषय में मान्यता है कि जो व्यक्ति पतिपति नाथ के दर्शन करता है उसका जन्म कभी भी पशु योनी में नहीं होता है। जनश्रुति यह भी है कि, इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय भक्तों को मंदिर के बाहर स्थित नंदी का प्रथम दर्शन नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति पहले नंदी का दर्शन करता है बाद में शिवलिंग का दर्शन करता है उसे अगले जन्म पशु योनी मिलती है।