नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने हाल ही में एक अधिसूचना जारी करते हुए कॉम्प्रोमाइज़ सेटलमेंट (समझौते की प्रक्रिया) के तहत बैंकों को विलफुल डिफॉल्टर्स (जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले) और धोखाधड़ी के मामलों के ऋण निपटान की अनुमति देने का निर्णय लिया है.
बैंक यूनियनें इसके खिलाफ हैं. उनका कहना है कि आरबीआई का ‘कॉम्प्रोमाइज़ सेटलमेंट और तकनीकी राइट-ऑफ का तरीका’ एक ‘हानिकारक कदम है जो बैंकिंग प्रणाली की अखंडता से समझौता कर सकता है और विलफुल डिफॉल्टर्स से प्रभावी ढंग से निपटने के प्रयासों को कमजोर कर सकता है.
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (एआईबीओसी) और ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉइज एसोसिएशन (एआईबीईए) ने कहा, ‘बैंकिंग उद्योग में प्रमुख हितधारकों के रूप में हमने हमेशा विलफुल डिफॉल्टर्स के मुद्दे से निपटने के लिए सख्त उपायों की वकालत की है. हम दृढ़ता से मानते हैं कि धोखाधड़ी या विलफुल डिफॉल्टर्स के रूप में वर्गीकृत खातों के लिए सेटलमेंट की अनुमति देना न्याय और जवाबदेही के सिद्धांतों का अपमान है.’
दोनों संघों का कहना है कि वे 6 लाख बैंक कर्मचारियों का का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने जोड़ा, ‘यह निर्णय न केवल बेईमान उधारकर्ताओं को ईनाम देने जैसा है बल्कि लोन लेने वाले ईमानदार ग्राहकों, जो अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने का प्रयास करते हैं, को गलत संदेश भी भेजता है.’
उल्लेखनीय है कि आरबीआई ने अपने ‘दबावग्रस्त संपत्तियों के समाधान के लिए प्रुडेंशियल फ्रेमवर्क’ (7 जून, 2019) में स्पष्ट किया था कि धोखाधड़ी/अपराध/जानबूझकर चूक करने वाले उधारकर्ता किसी तरह की ‘रीस्ट्रक्चरिंग’ (लोन डिफॉल्ट होने की किसी स्थिति में समझौता) के लिए पात्र नहीं होंगे.