आत्मा एक रहस्य है। मनुष्य जब से इस पृथ्वी पर आया है उसकी उत्सुकता इस बात में रही है कि वह उस मूल तत्व को जान सके जिसे आत्मा कहते हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में आत्मा का विस्तार से वर्णन किया है और बताया है कि प्रत्येक मनुष्य के शरीर में आत्मा रुप में मैं विराजमान रहता हूं। आत्मा ही जीवन है, आत्मा ही मूल सत्य है।
आत्मा अजर है, अमर है। यह न तो पानी से गलता है, अग्नि इसे जला नहीं सकती है और हवा इसे सुखा नहीं सकता। यानी यह अजर अमर है। लेकिन पण्डित जयगोविंद शास्त्री बताते हैं कि आत्मा की भी एक निश्चिम उम्र है। आत्मा एक शरीर में एक हजार वर्ष तक रह सकती है। इसके बाद इसे शरीर को छोड़ना पड़ता है।
आप कहेंगे कि लोग तो पचास-पचपन साल में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। आपका कहना भी सही है लेकिन ऐसा नहीं है कि आत्मा को उस शरीर से निकलने के बाद तुरंत शरीर मिल जाएगा।
उसे अपने एक हजार वर्ष तक के समय चक्र को पूरा करना होता है तभी जाकर उसे नया शरीर प्राप्त होता है। अगर आकस्मिक कारणों से शरीर त्याग करना पड़ता है और कर्मों का फल व्यक्ति को नहीं मिल पता है तब बार-बार जन्म लेकर सुख और दुःख को भोगता हुआ हजार वर्ष का क्रम पूरा करना पड़ता है।
व्यक्ति के रहन-सहन, खान-पान, योग-ध्यान के अनुसार आत्मा शरीर में कितने दिन ठहरेगा यह तय होता है। शास्त्रों और पुरानों में कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिसमें योग और ध्यान के बल पर मनुष्य ने आत्मा की पूरी उम्र यानी एक हजार वर्ष तक पृथ्वी का सुख प्राप्त किया है। भगवान राम, पांचों पांडव, भगवान श्री कृष्ण ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं जिन्हें दीर्घकाल तक पृथ्वी का सुख प्राप्त किया। ऋषि च्यवन तो बुढ़ापे को पीछे छोड़कर फिर से युवा बन गए थे।
श्री रामशर्मा आचार्य ने अपनी पुस्तक मरने के बाद हमारा क्या होता है में लिखा है कि आत्मा के रंग को लेकर भारतीय और पाश्चात्य योगियों का मत अलग-अलग है। भारतीय योगियों का मत है कि आत्मा का रंग शुभ्र यानी पूर्ण सफेद होता है जबकि पाश्चात्य योगियों के अनुसार आत्मा बैंगनी रंग की होती है।