भोपाल। इंडियन फैडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (आईएफडब्ल्यूजे) के 65वें स्थापना दिवस पर पद्नाभ नगर स्थित आरएनएस के कार्यालय में एक गरिमामयी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पत्रकारिता की वर्तमान चुनौतियां विषय पर एक परिचर्चा भी आयोजित की गई। इस परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में आईएफडब्ल्यूजे के पूर्व राष्ट्रीय सचिव एवं वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा एवं जनसंपर्क के पूर्व अपर संचालक एवं प्रदीपक पत्रिका के संपादक आरएमपी सिंह उपस्थित थे। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पत्रकार एवं बुद्धिजीवी शामिल हुए। इसमें सभी ने अपने-अपने अनुभव और विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि रमेश शर्मा ने आईएफडब्ल्यूजे संगठन से जुडऩे और संगठन द्वारा पत्रकारों के हित में किए गए संघर्ष को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि आईएफडब्ल्यूजे की स्थापना के बाद से पत्रकारों की स्थिति में सुधार हुआ है। यह एक प्रतिष्ठा वाला संगठन है जिसने पत्रकारों के हित में लगातार संघर्ष किया और आज इसके परिणाम सबके सामने है। श्री शर्मा ने पत्रकारिता में आ रही प्रतिस्पर्धा पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज पत्रकारिता की शिक्षा देने वाले माखनला चतुर्वेदी कॉलेज जैसे कई संस्थान देश में खुल रहे है और अखबारों में जो नई टैक्नोलॉजी आ गई है उससे पत्रकारिता को जिंदा रखना बड़ा मुश्किल हो गया है। उन्होंने इसके लिए जोर देते हुए कहा कि इसका मुकाबला करना है तो हमें पत्रकारिता से जुड़े एक विषय में महारत हासिल करनी होगी जिससे की प्रतिस्पर्धा का मुकाबला कर अपने सफर में आगे बढऩा होगा।
पूर्व जनसंपर्क अधिकारी आरएमपी सिंह ने परिचर्चा के दौरान अपने कार्यकाल के कई संस्मरण सुनाए। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि अखबारों में अब आर्थिकता हावी होने से पत्रकारिता खत्म हो गई है। इसके लिए ऐसे संगठनों से जुडक़र इसका विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा की अखबारों में संपादक संस्था खत्म हो गई है। आज जो हालत संपादकों की है वहीं पत्रकारों की हो गई है। दैनिक हिन्दुस्तान समाचार पत्र के संपादक आनंद प्रकाश शुक्ला ने कहा कि आज पत्रकारिता की विश्वसनीयता टूट चुकी है। पहले जो पाठक भरोसा करता थो वह आज नहीं रहा है जो एक गंभीर चुनौती है। इसके पहले वरिष्ठ पत्रकार एवं आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय सचिव कृष्णमोहन झा ने देश के श्रमजीवी पत्रकारों का प्रतिनिधि संगठन इंडियन फैडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट की स्थापना पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि आईएफडब्ल्यूजे की स्थापना 28 अक्टूबर 1950 को देश के प्रख्यात पत्रकार एवं नेशनल हेराल्ड के संपादक चेलापती राव ने देश की राजधानी दिल्ली की जंतर मंतर पर की थी। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आईएफडब्ल्यूजे को 100 रुपए का चेक प्रदान करते हुए संगठन पत्रकारों के हित में उत्कृष्ट कार्य करने की शुभकामनाएं दी थी। उन्होंने कहा कि इन 65 वर्षों में फेडरेशन की सदस्य संख्या 30 हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है। उन्होंने बताया कि फेडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव परमानंद पाण्डे की भूमिका आईएफडब्ल्यूजे की सक्रियता में महत्वपूर्ण रही। उन्हीं के प्रयासों से मजीठिया आयोग की सिफारिश पत्रकारों के हित में लागू करने में सफलता मिल सकी है। उनके एक दशक से भी अधिक संघर्षों का प्रतिफल मजीठिया आयोग के वेतनमान के रूप में पत्रकारों को मिला है। यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन जिनेवा तथा यूनेसको के जनसंचार विकास के अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों की योजना में सक्रियता से योगदान दे रहा है। मीडिया तथा श्रम संबंद्धित सभी शासकीय समितियों जैसे वेतन बोर्ड, प्रेस कौशिल, संवाददाता मान्यता की प्रेस सलाहकार परिषद तथा विदेश यात्रा शिष्ट मंडलों के लिए आईएफडब्ल्यूजे मान्य है। विगत 65 वर्षों में सतत संघर्ष द्वारा आईएफडब्ल्यूजे ने पत्रकारों के लिए कई श्रमिक लाभ हासिल किए है। जैसे 1956 में संसद द्वारा पारित सर्वप्रथम श्रमजीवी पत्रकार एक्ट जिसमें काम के घंटे, वेतन कानून आदि निर्धारित हुए। 1954 तथा 1980 में प्रेस आयोग की रचना करना, वेतन बोर्ड का गठन एवं प्रेस परिषद की स्थापना आईएफडब्ल्यूजे की विशेष उपलब्धि है। परिचर्चा में मीडिया पेशन के स्थानीय संपादक शांतनु शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन आरएनएस के सुभाष पाठक ने किया।
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