हैदराबाद, (आईएएनएस)| आंध्र प्रदेश के सेसाचलम के जंगलों में श्रीलंका में पाया जाने वाला उड़ने वाला सांप देखा गया है। वन अधिकारियों और अनुसंधानकर्ताओं ने यह जानकारी दी।
अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि क्रिसोपेलिया प्रजाति का यह सांप श्रीलंका के बाहर पहली बार पाया गया है।
श्रीलंका में निचले शुष्क इलाकों और मध्यम जलवायु वाले इलाकों में पाए जाने वाले सांप की यह प्रजाति चित्तूर जिले के सेसाचलम जैवमंडल रिजर्व में पाई गई।
पर्वतीय धर्मस्थल तिरुमाला से 25 किलोमीटर दूर घने वनक्षेत्र चालमा में लगभग एक वर्ष पहले यह सांप दिखाई दिया।
कई परीक्षणों के बाद सांप के क्रिसोपेलिया टैप्राबानिका प्रजाति होने की पुष्टि हुई है। जैव विविधता के क्षेत्र की शोध-पत्रिका ‘चेकलिस्ट’ के ताजा अंक में इसका खुलासा किया है।
वन्यजीव प्रबंधन क्षेत्र में वन संरक्षक एम. रविकुमार ने तिरुपति से फोन पर आईएएनएस से कहा, “हमारे पास इसके नमूने हैं और इसे हमने जैव विविधता से जुड़े आंकड़े रखने वाली कई शोध पत्रिकाओं को भेजा है।”
रविकुमार के मार्गदर्शन में बुबेश गुप्ता और एन. वी. शिवराम प्रसाद ने लंदन की ‘द नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम’ में कार्यरत साइमन टी. मैडॉक और बेंगलुरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के पारिस्थितिकी अध्ययन केंद्र में कार्यरत वी. दीपक के सहयोग से यह अनुसंधान किया।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर की शोध पत्रिका की 10वें वार्षिकांक में प्रकाशित शोध-पत्र के अनुसार, “आंध्र प्रदेश के सेचलम जैवमंडल रिजर्व में एक वयस्क सी. टैप्रोबानिका मिला, जो इस प्रजाति का भारत में मिला पहला सांप है और जो इस प्रजाति के सांप के ज्ञात निवास क्षेत्र से बाहर है।”
वन अधिकारी ने बताया कि उड़ने वाला सांप पाया जाना सेचलम वन की जैव विविधता को दर्शाता है।
उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि अन्य जीवों की अपेक्षा सांपों को खोजना काफी मुश्किल होता है, क्योंकि वे रात्रिचर होते हैं।
अनुसंधानकर्ता गुप्ता ने आईएएनएस से कहा कि उन्होंने इस प्रजाति के दो और सांपों की तस्वीरें ली हैं, जिन्हें उन्होंने कुछ ही महीने पहले देखा।
पत्रिका के अनुसार, इसी प्रजाति के सांप की तस्वीर वी. शांताराम ने 2000 में आंध्र प्रदेश में ऋषि घाटि के पर्णपाती वन में ली थी, लेकिन वास्तव में सांप फिर नहीं खोजा जा सका।
सेचलम पहाड़ी पूर्वी घाटों का हिस्सा है और पश्चिमी घाट की अपेक्षा अभी इस इलाके में जैव विविधता की विधिवत खोज नहीं हो सकी है।
गुप्ता ने आईएएनएस से कहा, “सब लोग पश्चिमी घाट की बात करते हैं, लेकिन पूर्वी घाट में भी हमें कई दुर्लभ जीवों के प्रमाण मिले हैं। पूर्वी घाट में दीर्घकालिक अनुसंधान की अधिक जरूरत है।”