विजयवाड़ा, 15 जनवरी (आईएएनएस)। अदालत के आदेशों और पुलिस की चेतावनियों का कोई असर नहीं हुआ। आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों में मकर संक्रांति के मौके पर खुलेआम खेला गया मुर्गो की लड़ाई का हिंसक खेल। और, इसमें करोड़ों के वारे-न्यारे हुए।
धनवानों ने, प्रभावशाली लोगों ने विशेष नस्ल के मुर्गो की इस खूनी लड़ाई पर करोड़ों की बाजी लगाई। पूर्वी गोदावरी, पश्चिमी गोदावरी और कृष्णा जिलों के सैकड़ों गांवों में हजारों लोगों ने यह ‘खेल’ देखा। स्थानीय नेताओं ने इसे खुला संरक्षण दिया।
आयोजकों का कहना था कि यह तेलुगू संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है। इसके बगैर संक्रांति का उत्सव अधूरा है। विभिन्न राजनैतिक दलों के नेता और सेलिब्रिटी दर्शकों में शामिल थे।
खुले मैदानों में तंबू लगाए गए। मुर्गो की लड़ाई के लिए बड़े पैमाने पर इंतजाम किए गए। यह दूसरे दिन भी जारी रहा। कई आयोजकों ने तो दूधिया रोशनी (फ्लडलाइट) में इसका आयोजन किया। कुछ ने एलईडी स्क्रीन लगा रखी थी, ताकि दर्शक लड़ाई को ठीक से देख सकें।
माना जा रहा है कि दोनों गोदावरी जिलों और कृष्णा जिलों के कुछ हिस्सों में इस खेल पर 500 करोड़ रुपये की बाजी लगाई गई।
मुर्गो की इस खूनी लड़ाई पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगाई हुई है। पुलिस ने यह जानकारी देते हुए कई जगह बैनर लगाए थे। पुलिस ने कुछ जगहों पर छापे मारे और कुछ लोगों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया।
लेकिन, पुलिस यह देखकर नरम पड़ गई कि नेतागण खुद ही आयोजकों का हाथ थाम रहे हैं और कई जगहों पर खुद ही खेल का उद्घाटन कर रहे हैं। पुलिसवाले या तो उन गांवों में गए ही नहीं जहां खेल आयोजित हुए या इससे आंखें फेर लीं।
फिल्म निर्माता कोडानदारामी रेड्डी उन लोगों में शामिल थे जो पश्चिम गोदावरी के एलुरु के पास एक गांव में मुर्गो की लड़ाई देखने पहुंचे।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “मैं नहीं जानता कि वे क्यों इस पर रोक लगाना चाहते हैं। यह परंपरा है। लोग दो-तीन दिन के लिए साथ आते हैं और मस्ती करते हैं। यह कोई नई बात नहीं है।”
आयोजकों के हाथों में नोटों की गड्डियां देखी जा सकती थीं।
इस ‘खेल’ में प्रशिक्षित मुर्गो के पैर में छोटे चाकू लगे होते और वे इन्हीं से एक-दूसरे को लहुलुहान करते हैं। लोग तालियां पीट-पीट कर इसका मजा लेते हैं। आम तौर से दोनों मुर्गो में से किसी एक की मौत हो जाती है।
पक्षी प्रेमी इस पर रोक लगाने के लिए आवाज उठाते रहे हैं। बीते साल सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर और ऐसे ही अन्य हिंसक खेलों के संक्रांति के मौके पर आयोजन पर रोक लगा दी थी।
लेकिन, तेलुगू संस्कृति के नाम पर यह जारी है। अब जनप्रतिनिधियों के एक समूह ने कहा है कि तमिलनाडु में सांड़ों के खेल जलिकट्टू की इजाजत देने वाले प्रस्तावित अध्यादेश में मुर्गो के इस खेल को भी शामिल किया जाए।