दोहा, 29 फरवरी – अमेरिका और अफगानिस्तान के आतंकी गुट तालिबान के बीच वर्षो की लंबी वार्ता के बाद शनिवार को कतर की राजधानी दोहा में शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इस बीच, अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा कि तालिबान से हुआ समझौता तभी कारगर साबित होगा, जब तालिबान पूरी तरह से शांति कायम करने की दिशा में काम करेगा। इस समझौते के साथ ही अमेरिका और अफगान तालिबान ने 18 वर्षीय लंबे रक्तपात को समाप्त करने की पहल पर काम किया है।
द न्यूज इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के उपनेता और मुख्य वार्ताकार मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात की ओर से शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए, जबकि अमेरिकी दूत जल्माय खलीलजाद ने वाशिंगटन की ओर से हस्ताक्षर किए।
हस्ताक्षर समारोह में अफगान तालिबान व अफगान सरकार के अधिकारियों के साथ ही और अमेरिका, कतर और पाकिस्तान के नेताओं ने भी भाग लिया। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी पाकिस्तान की ओर से दोहा में अमेरिका-तालिबान शांति समझौते पर हस्ताक्षर के गवाह बनें। इस दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने शामिल रहे।
इससे पहले शनिवार को कुरैशी ने दोहा में खलीलजाद से मुलाकात की थी और अमेरिका व तालिबान ने कतर की राजधानी में एक ऐतिहासिक शांति समझौते की तैयारी भी की थी।
कुरैशी ने खलीलजाद से मुलाकात के बाद कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को युद्ध-विराम वाले देश के पुनर्निर्माण और विकास में मदद करने की आवश्यकता है।
अमेरिका अब तालिबान से एक गारंटी के बदले अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस लेने की समय-सीमा भी घोषित करेगा। अमेरिका इस गारंटी पर सैनिकों को हटाएगा कि तालिबान अफगानिस्तान में अलकायदा जैसे आतंकवादी समूहों को काम करने की अनुमति नहीं देगा।
इस दौरान पोम्पियो ने कहा कि लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को समाप्त करने के लिए अमेरिका और तालिबान सहमत हो गए हैं।
उन्होंने कतर के अमीर को वार्ता में उनकी सहायता के लिए धन्यवाद भी दिया। अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा, “हमने दशकों की शत्रुता का अंत किया है। आज हम जिस समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे, वह हमारे कार्यों का एक सच्चा वसीयतनामा है।”
उल्लेखनीय है कि 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने 2001 में तालिबान के खिलाफ जंग के लिए अपने सैनिक अफगानिस्तान भेजे थे। यहां आतंकी गुटों के साथ लड़ाई में उसके हजारों सैनिक मारे जा चुके हैं। अमेरिका अब अफगानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी चाहता है। इसके लिए उसकी अफगान सरकार और तालिबान प्रतिनिधियों के साथ लंबे वक्त से चर्चा चल रही थी।