अमरीका और भारत के बीच कुछ हफ्तों तक चले “तनाव युद्ध” के बाद अब ऐसा लग रहा है कि अमरीकी-भारतीय संबंधों का पेंडुलम उलट दिशा में घूम गया है। अमरीका ने भारत को काफ़ी गुस्सा तो दिलाया है लेकिन अब अमरीकी अधिकारी यह दिखावा करने की कोशिश कर रहे हैं, मानो दोनों देशों के बीच संबंधों में कभी कोई बिगाड़ ही नहीं आया था।
वाशिंगटन से मिली रिपोर्टों के अनुसार, आजकल अमरीकी राजनयिकों द्वारा अपने देश में नियुक्त भारत के नए राजदूत एस. जयशंकर को यह बात समझाने के लिए बहुत ही धैर्यपूर्वक प्रयास किए जा रहे हैं कि अब द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक एजेंडे का कार्यान्वयन फिरसे आरम्भ करना चाहिए, अर्थात् परमाणु अप्रसार, निशस्त्रीकरण, अंतर्राष्ट्रीय संकटों और विवादों के निपटान के अलावा द्विपक्षीय व्यापार और सैन्य-तकनीकी सहयोग जैसे क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी का विकास किया जाए।
लेकिन अब सवाल पैदा होता है कि क्या अमरीका और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों में इतनी तेज़ी से सुधार करना संभव है जबकि अभी एक सप्ताह पहले तक दोनों देशों के बीच संबंध बिगड़ते ही जा रहे थे? भारत समझता है कि उसकी एक राजनयिक, देवयानी खोबरागड़े के संबंध में अमरीकी अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई वियना कन्वेंशन का घोर उल्लंघन थी। खोबरागड़े काण्ड के बाद भारतीय अधिकारियों ने अमरीका के ऊर्जामंत्री अर्नेस्ट मेनिस के साथ दिल्ली में बातचीत करने से मना कर दिया था। इसके अलावा, भारत के विदेश मंत्रालय ने देश के हवाई अड्डों में सुरक्षा-जाँच के लिए अमरीकी राजदूत को भी आम यात्रियों की कतार में खड़ा होने को कह दिया था। देश में अमरीकी राजनयिकों के घूमने पर प्रतिबंध भी लगाया गया था। भारत सरकार ने पिछले सप्ताह अमरीकी दूतावास को निर्देश दिया था कि उसे अपनी वे सभी गतिविधियां बंद करनी होंगी जिनका राजनयिक मिशन की गतिविधियों से कोई संबंध नहीं है। इस संदर्भ में रेडियो रूस के समीक्षक सेर्गेई तोमिन ने कहा-
निःसंदेह, हाल के कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच संबंधों का बहुत तेज़ी से विकास हुआ है। इसका एक सबसे बड़ा कारण परमाणु सहयोग के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच हुआ एक समझौता है। हालांकि, देवयानी खोबरागड़े स्केंडल दो देशों के संबंधों में उत्पन्न गंभीर समस्याओं का केवल एक मामूली पहलू ही है। वाशिंगटन और दिल्ली के बीच हनीमून अब अतीत की बात बन गया है। आजकल दोनों देशों के बीच रणनीतिक गठबंधन के समर्थक बहुत ही हतोत्साहित हैं। अब ये दोनों देश सहयोगी-देश तो बने रह सकते हैं लेकिन उनके बीच रणनीतिक साझेदारी नहीं चल पाएगी।
आम तौर पर ऐसा होता रहा है कि अमरीका अपने सहयोगियों से तो ज़रूरत से कहीं ज़्यादा तकाज़ा करता है जबकि अपने सहयोगियों के हित में वह कुछ भी करने को तैयार नहीं होता है। देवयानी खोबरागड़े काण्ड इसी प्रवृत्ति का एक ताज़ा उदाहरण है। इस संदर्भ में सेर्गेई तोमिन ने कहा-
इतिहास इस बात का साक्षी है कि दुनिया के जिस किसी देश ने भी अमरीका के साथ गठजोड़ बनाने की कोशिश की, उसी देश को अपनी संप्रभुता से हाथ धोने पड़े। लेकिन भारत को, जो एशिया की एक उभरती महाशक्ति है, ऐसी भूमिका कभी पसंद नहीं आएगी।
अमरीका के साथ अपने संबंधों में भारत नई परिस्थितियों में ढली हुई गुटनिरपेक्षता की नीति पर चलना पसंद करेगा। जब भारत स्वतंत्र हुआ था तो उस वक्त गुटनिरपेक्षता की नीति बहुत कारगर सिद्ध हुई थी। आज की नई परिस्थितियों में यह नीति “रणनीतिक स्वायत्तता” में तब्दील हो गई है। इस नीति के अंतर्गत अमरीका के साथ संबंधों में एक निश्चित दूरी बनाई रखी जा सकती है लेकिन अमरीका के साथ संबंधों का एक निश्चित लाभ भी उठाया जा सकता है। इस प्रकार की नीति पर चलते हुए भारत भविष्य में ऐसे अपमान से बचने में सक्षम होगा जैसा अपमान उसे खोबरागड़े काण्ड के कारण अभी हाल ही में झेलना पड़ा था।
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