दक्षिण एशिया की राजनीति और सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ क्रिस्टोफजैफ्रेलॉट फ्फ्रेलॉट का कहना है कि अफगानिस्तान को भारत की सैन्य मदद पाकिस्तान के सुरक्षा तंत्र के नियंताओं को नागवार गुजर सकती है और इसका नतीजा पठानकोट जैसे और हमलों की शक्ल में सामने आ सकता है।
पेरिस इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल स्टडीज के सेंटर फॉर स्टडीज इन इंटरनेशनल रिलेशन्स के प्रोफेसर और कई किताबों के लेखक इस वक्त साहित्य समारोह में हिस्सा लेने जयपुर आए हुए हैं। आईएएनएस से खास मुलाकात में उन्होंने कहा, “अगर भारत, अफगानिस्तान की सैन्य मदद करेगा तो इसका नतीजा और पठानकोट की शक्ल में सामने आ सकता है।”
उन्होंने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काबुल की यात्रा के दौरान अफगानिस्तान की सेना को हेलीकॉप्टर देने पर सहमति जताई। इसके बाद पठानकोट के वायुसैनिक अड्डे पर और अफगानिस्तान के मजारे शरीफ में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले हुए।
उन्होंने कहा, “पाकिस्तानी सेना ने हेलीकाप्टर देने के भारत के प्रस्ताव को बहुत अच्छे से नहीं लिया है। उनके पास पहले से ही भारत के खिलाफ जेहादियों के इस्तेमाल का लालच है। ”
‘द पाकिस्तान पैराडाक्स : इंस्टैबिलिटी एंड रेजिलियंस’ के लेखक क्रिस्टोफ ने कहा कि दुनिया को पाकिस्तान के बारे में अपना नजरिया बदलना होगा।
उन्होंने कहा, “एक तरीका तो यह है कि उसे आर्थिक संकट से निकालना बंद किया जाए। उसे अपने वित्तीय ढांचे में सुधार के लिए बाध्य किया जाए। वहां धनवान कर नहीं देते। राज्य के पास विकास के लिए संसाधन नहीं हैं। रास्ता व्यापार का है, मदद का नहीं।”
इससे पहले साहित्य समारोह में ‘द पाकिस्तान पैराडाक्स’ विषय पर हुए सत्र में उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सुरक्षा तंत्र द्वारा कुछ आतंकी संगठनों पर कार्रवाई से भारत के लिए कुछ खास फर्क नहीं पड़ने वाला है।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान आज भी अच्छे और बुरे आतंकवादी में फर्क करता है। इसीलिए जब कोई हाथ से निकलने लगता है तो उसे खत्म कर नए को पैदा कर देता है।
भारतीय राजनीति, विशेषकर दक्षिणपंथी हिंदूवाद का गहन अध्ययन करने वाले और इस पर कई किताबें लिखने वाले क्रिस्टोफ ने भारत में बहुसंख्यकवाद के उभरते खतरे के प्रति भी चेताया।
उन्होंने आईएएनएस से कहा, “इस बात का खतरा है कि भारत, पाकिस्तान की प्रतिछाया बन जाएगा..यह बहुत अच्छी संभावना नहीं है।”
उन्होंने कहा, “बहुसंख्यकवाद, जिसमें बहुसंख्यक समुदाय या हिंदुओं को प्रथम श्रेणी का नागरिक बना दिया जाए और अल्पसंख्यकों को नहीं, व्यवहार में हो सकता है। इसके लिए किसी संवैधानिक बदलाव की जरूरत नहीं है। इजरायल एक उदाहरण है। उन्होंने कानून नहीं बदला, लेकिन फिर भी वैसे बन गए।”
उन्होंने कहा कि घर वापसी, लव जेहाद जैसी बातों से अल्पसंख्यक समुदाय का अलगाव बढ़ेगा। भारत के लिए इससे सुरक्षा चिंताएं तो पैदा होंगी ही, दुनिया में इसका उच्च नैतिक आधार भी कमजोर होगा।