भोपाल-नगर-निगम चुनावों में वर्षों से टिकट की आशा पाले और वार्ड में मेहनत करते नेताओं की जगह जब वार्ड से बाहर के नेता जी को टिकट मिला तब उन नेताओं को कुछ दिन तो समझ नहीं आया की क्या करें.सन्निपात की स्थिति से बाहर आते ही बेचारे नेता जी अपने वार्ड से दूसरे वार्ड में पलायन कर गए क्योंकि अपने वार्ड में किस मुंह से मतदाताओं के सामने जाएँ.
अब पार्टी का दामन थाम कर चलने में भलाई रखने वाले बुद्धिजीवियों ने दुसरे वार्ड में पलायन कर अपने को टीम में रखे रहने की जुगत पाली क्योंकि उस यार्ड में कोई उन्हें पहचानता नहीं अपने लिए नहीं तो कम से कम साथी के लिए वोट मांग कर ही मन की आस पूरी कर लें.