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 होली का मातम… | dharmpath.com

Monday , 21 April 2025

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होली का मातम…

daldevअंशुमान “सुमन”-होली के दिन जब पूरा भारत रंगों के रंग से सराबोर रहता है। लोग ठंडाई पीते हुए फाग गाते हुए झूमते-गाते हैं क्या बच्चे और बूढ़े उस दिन सारी दूरियां एक झटके में बौनी हो जाती हैं। बच्चे पिचकारी में रंग भर कर हर आने जाने वालो पर बिना किसी भेदभाव के रंग डालते हैं, ना जात का भेद ना पांत का। लड़के-लडकियां सब टोली बना कर रंगों के रंग में डूबे रहते हैं तो उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में एक जगह ऐसी भी है जहाँ जब दुनिया के आसमान में रंगों के बादल होते हैं तो यहाँ गमो के बादल होते हैं। मैं बात कर रहा हूँ रायबरेली जिला की दक्षिणी दिशा में गंगा नदी के किनारे स्थित प्राक्रतिक सुन्दरता से लबरेज़ एक ऐसे कस्बे “डलमऊ” की जहाँ होली निर्धारित तिथि के ठीक तीन दिन बाद मनाई जाती है और इन तीन दिनों तक वहां के लोग शोक मनाते हैं वहाँ के राजा डलदेव की मृत्यु का जो होली के दिन दुश्मनो से लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए थे। वहां के लोग बताते हैं की पुराने दिनों में डलमऊ बहुत ही समृद्ध और वैभवशाली हुआ करता था। डलमऊ के लोग गंगा-जमुनी तहजीब के नुमाइन्दे थे और अभी भी डलमऊ की जमी गंगा-जमुनी तहज़ीब में डूबी हुई है। उस समय डलमऊ में दूर दराज से लोग नावो से आते थे और यही से व्यापार करने के लिए राज्य के अन्न भागों में जाते थे।प्रजावत्सल राजा डलदेव की रियासत डलमऊ में सभी खुश और सुखी थे। डलदेव की ख्याति दूर-दूर राजा डलदेव का स्मारक तक फैली हुई थी और वैभवशाली डलमऊ की भी इस वजह से अन्य राजा डलमऊ की सम्पन्नता से बहुत ईर्ष्या का भाव रखते थे किन्तु वो न तो राजा डलदेव से टक्कर लेने में सक्षम थे ना ही उन्हें परास्त करने में और डलमऊ की प्रजा भी डलमऊ की आन-बान-शान के लिए अपने प्राण हमेशा हथेली पर रखती थी।

डलदेव और डलमऊ की भव्यता से कुढ़ने वाले तो अनेक राजा थे पर जौनपुर का धूर्त राजा इब्राहीम शर्की, डलदेव और डलमऊ से कुछ ज्यादा ही शत्रु भाव रखता था पर वो चाह कर भी न कुछ कर सकता था न उस लायक था तो उसने एक कुटिल षड्यंत्र रचा डलदेव को परस्त करने का। पुरे जगत में पता था की राजा डलदेव अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते हैं और उनके साथ हर त्यौहार मिलकर मनाते हैं। होली का त्यौहार भी सभी त्योहारों में से एक था और उस दिन राजा डलदेव भी अपनी प्रजवात्सलता के चलते हुए अपनी प्रजा के साथ ठंडाई-भंग छानते हुए होली के त्योहार में मशगूल रहते हैं। डलदेव की इसी प्रजावत्सलता का फायदा उठाते हुए धूर्त इब्राहीम शर्की ने सोचा अगर होली के दिन डलमऊ पर चोरी छिपे हमला कर दिया जाये तो राजा डलदेव और डलमऊ को परस्त किया जा सकता है।

होली का मातम… Reviewed by on . अंशुमान “सुमन”-होली के दिन जब पूरा भारत रंगों के रंग से सराबोर रहता है। लोग ठंडाई पीते हुए फाग गाते हुए झूमते-गाते हैं क्या बच्चे और बूढ़े उस दिन सारी दूरियां ए अंशुमान “सुमन”-होली के दिन जब पूरा भारत रंगों के रंग से सराबोर रहता है। लोग ठंडाई पीते हुए फाग गाते हुए झूमते-गाते हैं क्या बच्चे और बूढ़े उस दिन सारी दूरियां ए Rating:
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