होलिका दहन हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख त्योहार होली पर्व से एक दिन पूर्व किया जाता है… होलिका दहन का तात्पर्य है बूरे कर्मों का नाश और सत्कर्म की विजय… ऐसी मान्यता है कि इसी दिन बूराई का प्रतीक राक्षस राज हिरणकश्यपु की बहन होलिका अग्नि की ज्वाला में भस्म हो गई थी और अच्छाई के प्रतीक भक्त प्रहलाद सही सलामत उसी अग्नी की ज्वाला में बच गए थे… आपको बता दें कि इसी विजय की खुशी में प्राचीनकाल से हिन्दू धर्मानुयायियों द्वारा प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाता है और उसके अगले ही दिन होली का त्योहार धूम-धाम से मनाया जाता है..
गौरतलब है कि इस वर्ष 26 मार्च 2013 दिन मंगलवार को फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जायेगा.. आपको मालूम हो कि भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है… ऐसे तो हिंदू धर्म का दायरा विशाल है, इसके अंदर अनगिनत मान्यताएं, परंपराएं एवं रीतियां व्याप्त हैं… हालांकि बदलते परिवेश के साथ-साथ लोगों का विचार व धारणाएं बदली है, उनके सोचने-समझने का तरीका भी बदला है, परंतु संस्कृति का आधार अपनी जगह आज भी कायम है और इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में भी लोग आने वाले सभी त्योहारों को अपने-अपने रीति-रीवाजों के अनुसार बड़े ही धूम-धाम से मनाते हैं..
होलिका दहन में कुछ वस्तुओं की आहुति देना अत्यंत ही शुभ माना जाता है.., उसमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने और नई फसलों का कुछ भाग है… स
प्त धान्य में आता है- गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर…
होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है.. इस पूजा के समय पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए.. पूजा में निम्न सामग्रियों का प्रयोग उचित हैः- एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि.. इसके अलावे नई फसल के धान्य जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखें.. इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिये जाते है…
होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए. गोबर से बनाई गई ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती है. इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती
है..
कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटा जाता है.. उसके बाद लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है… रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है… गंध- पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है.. पूजन के पश्चात जल से अर्ध्य दिया जाता है… सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्जवलित कर दी जाती है.. अंत में सभी पुरुष रोली का टीका लगाते है और बडों का आशीर्वाद लेते है…
हालांकि वर्तमान परिवेश में पर्यावरण को देखते हुए वृ्क्षारोपण का महत्व बढ़ गया है.. सरकार और गैर सरकारी संस्थानों द्वारा वृक्षारोपण का कार्य जोरों पर है.. जंगल की कमी के कारण पर्यावरण पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं.. ऐसे परिस्थितियों में हमें होलिका दहन में लकड़ियों को जलाने के बजाय आपसी द्वेष और कटुता को जलाने पर जोर देना चाहिए.. ताकि हम सब एकजूट होकर न केवल देश की उन्नति और विकास के लिये कार्य करे, बल्कि इस पृथ्वी को वायु-प्रदूषण और पेड़ों की कमी जैसी समस्याओं से रक्षा भी करें.. जिससे न केवल देश बल्कि पूरे विश्व का कल्याण हो और आने वाली पीढ़ी हमारे इस कार्य के लिए सदा हमारे उपर गर्व करें..
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