गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है। वह हमारी आस्था और संस्कारों की आत्मा है। महाराज सगर के साठ हजार पुरुखों को मोक्ष दिलाने के लिए गंगा का अवतरण धरती पर हुआ। लेकिन हमें मोक्ष दिलाने वाली गंगा आज खुद मोक्ष चाहती हैं।
गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है। वह हमारी आस्था और संस्कारों की आत्मा है। महाराज सगर के साठ हजार पुरुखों को मोक्ष दिलाने के लिए गंगा का अवतरण धरती पर हुआ। लेकिन हमें मोक्ष दिलाने वाली गंगा आज खुद मोक्ष चाहती हैं।
गंगा को अगर यह मालूम होता है कि धरती पर उनका आगमन खुद के लिए बड़ी मुसीबत बनेगा तो शायद वह भगवान शंकर की जटा से बाहर नहीं आती। गंगा का आंचल आज इतना मैला हो चला है कि जल आचमन के योग्य तक नहीं है। लेकिन समय के साथ सब कुछ बदलता है। शायद इसी को इतिहास कहते हैं।
सरकार की मंशा को देखने से यह साफ होता है कि गंगा का आंचल अब मैला नहीं रहेगा। देश में ‘नमामि गंगे’ परियोजना की शुरुआत जो हो गई है।
पांच साल की इस परियोजना पर 20 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा। लेकिन पहले चरण में इस पर 1500 करोड़ रुपये खर्च होंगे। गंगा की स्वच्छता के लिए मंत्रालय भी बनाया गया है।
सात राज्यों में 104 स्थानों से इस परियोजना की शुरुआत की गई है। 50 बड़ी परियोजनाओं पर काम होगा। पूरे गंगा बेसिन में 1142 छोटी बड़ी परियोजनाएं गंगा सफाई के लिए बनाई गई हैं। गंगा सफाई के लिए संबंधित मंत्रालय की मंत्री उमा भारती ने गंगोत्री से पदयात्रा का भी ऐलान किया है। गंगा की स्वच्छता को लेकर वाराणसी हरिद्वार और दूसरे शहरों की उम्मीद जगी है।
सवाल बड़े हैं, क्या गंगा स्वच्छ हो पाएगी? पवित्र कहलाने वाला जल क्या आचमन योग्य होगा? हमारी गंगा की धारा क्या अविरल होगी?
गंगा में पर्याप्त जल छोड़ा जाएगा, ताकि वह सदानीरा और सतत वाहिनी की मर्यादा को अक्षुण्य रख पाएं, क्योंकि इस तरह की सरकारी परियोजनाएं तो 30 साल पूर्व भी कांग्रेस सरकार में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरफ से शुरू की गई थी।
पूर्व प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी ने गंगा सफाई के लिए ‘गंगा एक्शन प्लान’ की शुरुआत 1985 में की थी, जिसका दूसरा चरण 1993 में शुरू हुआ। इस योजना पर करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन कोई परिणाम नहीं मिला। इसे गंगा एक्शन प्लान का नाम दिया गया था।
गंगा सफाई पर अब तक हजारों करोड़ की राशि बहा दी गई, लेकिन गंगा साफ नहीं हुई। गंगा की स्वच्छता को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत और उच्चन्यायालय में काफी संख्या में मुकदमें विचाराधीन हैं।
सर्वोच्च अदालत दो बार सरकारों को चुभनेवाली टिप्पणी कर चुकी है। अदालत ने सरकारों से पूछा कि क्या 100 साल में भी गंगा स्वच्छ हो पाएंगी? दूसरी मुखर टिप्पणी थी कि कोई बताएं गंगा कहां साफ हुई है? अदालत की यह तल्ख टिप्पणी सीधे परियोजनाओं की अव्यवस्था और मंशा पर सवाल उठाती है।
भौगोलिक आंकड़ों में समझें तो गंगा की लंबाई 2510 किलोमीटर है। उत्तर प्रदेश में गंगा 1,000 मील का सफर तय करती है। उत्तराखंड में 405 और पश्चिम बंगाल में 520 किलोमीटर की यात्रा गंगा तय करती है, जबकि झारखंड में यह 40 किमी का दायरा तय करती है। 10 हजार वर्गमील में गंगा बेसिन फैली है। यह 100 मीटर गहरी हैं। 1700 से अधिक शहर, कस्बे और गांव इसके बेसिन में आजाद हैं।
गंगा की गोद में सुंदरवन जैसा डेल्टा है। सात राज्यों से होकर यह गुजरती है। जलीय जीव जंतुओं के संरक्षण का यह अह माध्यम है। गंगा से 50 करोड़ लोगों के सरोकार सीधे जुड़े हैं। गंगा का महत्व मानव जीवन के इतर जलीय जंतुओं के लिए भी वरदान है। इसके जल को अमृत माना गया है और इसकी राह में आने वाली जड़ी-बूटियां मानव जीवन को संरक्षित करती हैं। लेकिन बढ़ती आबादी और वैज्ञानिक विकास ने गंगा के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।
गंगा सिमट रही है। गंगा किसानों और कृषि के लिए हजारों मील लंबा कृषि भूभाग उपलब्ध कराती हैं। वैज्ञानिक भविष्यवाणियों को मानें तो गंगा का अस्तित्व खतरे में है।
पर्यावरण असंतुलन और तापमान में वृद्धि के चलते ग्लेशियर अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। एक वक्त ऐसा भी आएगा, जब ग्लेशिर खत्म हो जाएंगे और हमारी गंगा का आंचल सूखा हो जाएगा।
सर्वेक्षणों के अनुसार, गंगा में हर रोज 26.0 लाख लीटर रासायनिक कचरा गिराया जाता है, जिसका सीधा संबंध औद्यौगिक इकाइयों और रसायनिक कंपनियों से है।
गंगा के किनारे परमाणु संयत्र, रासायनिक कारखाने और सुगर मिलों के साथ-साथ छोटे बड़े कुटीर और दूसरे उद्योग स्थापित हैं। कानपुर का चमड़ा उद्योग गंगा का आंचल मैला करने में सबसे अधिक भूमिका निभाता है। गंगा में गिराए जाने वाले शहरी कचरे का हिस्सा 80 फीसदी होता है, जबकि 15 प्रतिशत औद्यौगिक कचरे की भागीदारी होती है।
गंगा के किनारे 150 से अधिक बड़े औद्यौगिक इकाइयां स्थापित हैं। गंगा को साफ सुथरा रखने के लिए 1912 में ही पंडित मदन मोहन मालवीय जी की तरफ से आंदोलन छेड़ा गया था। आखिरकार 1916 में अंग्रेसी हूकूमत के साथ एक समझौता हुआ था, जिसमें गंगा को अविरल बनाने के लिए 1,000 लीटर क्यूसेक पानी छोड़ने की सहमति बनी। लेकिन स्वतंत्र भारत में बनी सरकारों ने उस पर कोई अमल नहीं किया गया। आज उस पर अमल किया गया है यह अच्छी बात है।
हमारे नीति नियंताओं को टेम्स नदी को लेकर उम्मीद जगी है। कहा जाता है कि 1957 में टेम्स दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में शुमार थी। जैविक तौर पर सरकार ने उसे मृत नदी घोषित कर दिया गया था। प्रदूषण के कारण वहां की राजधानी को भी हटाना पड़ा था। लेकिन लोगों की जागरूकता के चलते आखिरकार टेम्स और राइन नदी साफ और स्वच्छ हो गई। शायद यही हमारी उम्मीद है।
लेकिन हम सिर्फ नारों से गंगा को साफ नहीं कर सकते। इसके लिए नीति और नजरिया की आवश्यकता है। सभी को अपने दायित्वों के साथ आगे आना होगा। सरकार के भरोसे काम नहीं किया जा सकता है। नमामि गंगे योजना से सीधे आम लोगों और गांवों को जोड़ कर जागरुकता के माध्यम से अधिक सफलता हासिल की जा सकती है।
गंगा सफाई अभियान की सफलता के लिए सबसे पहला और प्रभावी कदम शहरी और औद्यौगिक कचरे को गंगा में गिरने से रोकना होगा। इसके लिए कानपुर, वाराणसी, पटना और दूसरे शहरों के नालों के पानी के लिए जल संशोधन संस्थानों की स्थापना करनी होगी।
कचरे का रूप परिवर्तित कर उसके उपयोग के लिए दूसरा जरिया निकालना होगा। गंगा में गिरती रासायनिक गंदगी को रोका जा जाए। धार्मिक संस्कारों को लेकर जागरूकता लाई जाए। इसके अलवा गंगा को सीधे गांव और मनरेगा से जोड़ा जाए।
राज्यों को इसके लिए आगो आना चाहिए। अपनी तरफ से खास योजनाएं संचालित करनी चाहिए। जनप्रतिनिधियों और एनजीओ को इस अभियान में अच्छी भूमिकाएं निमानी चाहिए।
स्कूली शिक्षा में गंगा और उसकी स्वच्छता पर एक नैतिक शिक्षा की कक्षाएं होनी चाहिए। खासकर उन इलाकों में जहां जिन राज्यों से होकर गंगा गुजरती है। हलांकि यह सब बाताने की आवश्यकता नहीं है। नमामि गंगे परियोजना में इसका लंबा खाका खींचा गया है। लेकिन गंगा को हम तभी स्वच्छ और साफ रखने में कामयाब होंगे जब खुद की मोक्षता के पहले हमें गंगा की स्वच्छता का खयाल रखना होगा।
हमें गंगा स्नान और मोक्ष की कामना त्याग कर ‘गंगे तव दर्शनाथ मात्र मुक्ति’ पर चलना होगा। तभी हमारी गंगा स्वच्छ, साफ, सुथरी, निर्मल और आचमन के योग्य होंगी। (आईएएनएस/आईपीएन)
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)