अनिल सिंह (भोपाल)– हाउसिंग बोर्ड का पर्यावास भवन स्थित दफ्तर जो मुख्यालय है विभाग का यहाँ आला अफसरों के दफ्तर हैं।अध्यक्ष रामपाल सिंह ,एम् सी गुप्ता आयुक्त जैसे बड़े -बड़े लोग यहाँ के कर्ता-धर्ता हैं।भारत के इन वीरों को जो प्रशासन देता है उसके बदले ये क्या दे पाते हैं ,इनकी प्रशासनिक क्षमता क्या है इसकी बानगी हम आपको बताते हैं इनके अधीनस्थ कर्मचारियों की हरकतों और अपने आला अफसरों के क्रिया कलाप के प्रति रोष क्या है —————-
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(सुराज प्रशासन) यह बोर्ड की वेबसाइट पर अलंकृत है कैसा प्रशासन है यह आप जानिये हमसे —–
क्या घटना हुई
बोर्ड से मुझे एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमे चाहे गए प्रपत्रों की फीस चुकाने के बाद प्रपत्र प्राप्ति का उल्लेख था।मैं फीस जमा करने 8-7-13 को शाम 3:00 बजे पहुंचा तृतीय तल स्थित राशि जमा करने के काउंटर पर जहाँ कैशिअर ने कहा कि नगद हम जमा नहीं करेंगे तथा बैंक में आप पैसा जमा करिए या डी .डी .बनवाईये और चूंकि अब बैंक बंद हो गया है एवं हमारे लेखाधिकारी साहब भी नहीं हैं अतः आप कल आईये हम आपको बैंक का कोड बता देंगे आप पैसे जमा कर दीजियेगा।मेरे द्वारा इस अनुरोध पर की सूचना के अधिकार की एक 10/- rs. की रसीद है वह जमा कर लीजिये इस पर कैशिअर महोदय बोले कि लेखाधिकारी नहीं हैं आप कल ही आईये दोनों काम हो जायेंगे।
दिनांक 9-7-13 को क्या हुआ
मैं दोपहर 11:30 बजे पुनः कैश काउंटर पर पहुंचा,कैशिअर महोदय ने सारे पत्र देखे फिर बोले आप बाद में आईयेगा लेखाधिकारी महोदय नहीं हैं वे अग्रेषित कर्रेंगे तब पैसे जमा होंगे,काफी देर इन्तेजार के बाद मैंने पूछा की लेखाधिकारी हैं या कहीं बाहर तो कैशिअर ने कहा यहीं कहीं बैठे होंगे,मोबाइल नम्बर मांगने पर उन्होंने कहा हमारे पास उनका नम्बर नहीं है,मैं आयुक्त गुप्ता जी के कक्ष में गया उनके पी .ए . ने कहा कि साहब व्यस्त हैं आप बैठिये उनसे मैंने लेखाधिकारी यादव का नम्बर माँगा और उस फ़ोन नम्बर 945680001 पर संपर्क कर अपनी परेशानी से अवगत करवाया तब वे बोले मैं आता हूँ।तब तक दोपहर के 1 बजकर 11 मिनिट हो चुके थे।
लेखाधिकारी के आने पर क्या हुआ ?
अधिकारी महोदय आते ही बोले मैं विद्युत् शाखा में था,वहां का प्रभार भी मेरे पास है,यह पूछने पर की आपके अधीनस्थों को क्यों नहीं पता थी यह बात की आपको वे खबर करते या वहां साइन करवा लाते तब या आपकी अनुपस्थिति में कार्य बाधित हो तब कोई और साइन करे तब ये निरुत्तर रहे।
मोबाइल नम्बर अधीनस्थों को नहीं पता होने पर महाशय बोले अफसर जैसा चाहेगा वैसा होगा,ये नम्बर मेरा व्यक्तिगत है आप लोगों के लिए नहीं ,आपको नम्बर मिला कहाँ से?यह बताने पर की आयुक्त के सचिव ने यह नम्बर दिया है ये चुप रहे।आयुक्त महोदय का नम्बर मिल जाता है लेकिन इन अफसर का नहीं।
वहां एक इनके समर्थक आ गए वे तो और कमाल के थे
इतनी गहमागहमी में बेचारे कैशियर स्वयं ही मुझसे पैसे ले कर जमा कर आये और रसीद मुझे दे दी।लेखाधिकारी के एक कट्टर समर्थक वहां आ पहुंचे और उन्होंने वो आग उगली कि जब उन्होंने जाना की मैं पत्रकार हूँ वे अपना आधा अधूरा नाम रघुवंशी बता कर निकल गए,लेकिन बोले क्या वह यहाँ प्रस्तुत है —
1-– आप शिकायत किससे करोगे यहाँ कुछ नहीं होता,गुप्ता जी क्या करेंगे आज यहाँ कल दूसरे विभाग में,वे क्या कर लेंगे।
2 — आपको प्रश्न करना है तो रामपाल जी और गुप्ता जी से करो हाउसिंग बोर्ड के लिए क्या किये वे,कितनी जमीनें अधिग्रहित कीं,कितनी योजनायें बनायीं,बी डी ए कितना तरक्की कर गया हम कहाँ है —–ज्यादा पूछने पर उन्होंने कहा हम है “रघुवंशी बाबा”
लेखाधिकारी जी से उनके कार्य से सम्बंधित प्रश्न- उत्तर
प्र— यहाँ नगद पैसे जमा क्यों नहीं करते,लोग दूर-दूर से आते हैं परेशान होते हैं ?
यादव जी–यह सुविधा हेतु है।
प्र–किसकी सुविधा?जनता की या आप की
यादव जी–कोई उत्तर नहीं।
प्र–आप की अनुपस्थिति में किसी और को आपने अधिकार नहीं दिए
यादव जी– कोई उत्तर नहीं।
प्र –आप यदि कार्यालय समय में कहीं और रहते हैं तो आपके स्टाफ को जानकारी नहीं रहती,कोई संपर्क no. भी नहीं होता उनके पास।
यादव जी– कोई जवाब नहीं।
यह स्थिति है जो मुझे वहां देखने को मिली और जिसका सामना मुझे करना पड़ा सोचिये वह जन जो यहाँ अपने कार्यों से आता होगा उसे कितनी परेशानियों का सामना करना होता होगा।अपने वरिष्ठ अधिकारीयों के लिए क्या मान है आप जान ही गए,किसी प्रकार का भय भी नहीं।कार्य के प्रति कोई जवाबदारी नहीं लेकिन लफ्फाजी सुराज की .