नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हज यात्रा के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। हज के लिए केंद्र द्वारा हर साल बनाई जाने वाली नीति को कामचलाऊ और असंतोषजनक करार देते हुए शीर्ष न्यायालय ने पांच वर्षीय नीति बनाने का निर्देश दिया।
अदालत ने सरकार की उस नीति को सही ठहराया है जिसके तहत महिलाओं व बुजुर्ग हज यात्रियों के साथ दोबारा यात्रा पर जाने वाले लोगों को बतौर मेहरम (जिससे निकाह न किया जा सके) जाने की अनुमति होगी। इन्हें सरकार द्वारा घोषित सब्सिडी का लाभ प्राप्त नहीं होगा। न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की पीठ ने कहा, हम उस सुझाव को स्वीकार करते हैं कि सालाना हज यात्रा नीति कामचलाऊ और असंतोषजनक है, लिहाजा इसके बदले पांच वर्षीय नीति बनानी चाहिए।
इसके मुताबिक हमलोगों ने इस साल पांच वर्षीय हज नीति बनाने का निर्देश दिया है, जिसे हज नीति 2013-17 भी कहा जा सकता है। हज नीति में महिला हज यात्रियों की विशेष जरूरतों का खयाल रखने का भी निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने उस सुझाव को भी स्वीकार कर लिया है जिसके मुताबिक अब हज यात्रा से जुड़ी पूरी प्रक्त्रिया एक निश्चित समय सीमा (अतिरिक्त समय के साथ) के अंदर पूरा करना होगा।
इसके अलावा आवेदन की अंतिम तिथि को समय से पूर्व जारी करना भी अनिवार्य होगा। पीठ ने नए दिशा-निर्देश में कहा, हमने न्याय मित्र के उस सुझाव को भी स्वीकार कर लिया है जिसके मुताबिक हज समिति द्वारा आवेदन, जांच और सीटों के आवंटन के लिए तय तिथि में कोई भी प्राधिकरण या कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकेगा।
इसके अलावा शीर्ष अदालत ने अटार्नी जनरल जीई वाहनवती द्वारा अदालत में पेश उस नीति को भी नए दिशा-निर्देश में शामिल कर लिया है जिसके अनुसार निजी टूर ऑपरेटरों का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया। कोर्ट के मुताबिक इससे यात्रा में एकाधिकार की स्थिति पैदा नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने हज यात्रा के लिए निवास सुरक्षित करने के लिए एक समिति का भी गठन किया है।
हज यात्रा से जुड़ी समस्याओं के निवारण के लिए संयुक्त सचिव के स्तर का अधिकारी नियुक्त करने का केंद्र को निर्देश दिया।