नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि केंद्र सरकार को कोविड-19 संक्रमण की वजह से जनवरी में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) मेन्स की परीक्षा में शामिल नहीं होने वाले अभ्यर्थियों के लिए सिविल सेवा में अतिरिक्त मौके देने की याचिका पर विचार करना चाहिए.
अदालत ने कहा कि संसदीय समिति की रिपोर्ट में हाल में की गई सिफारिश के मद्देनजर अभ्यर्थियों को यूपीएससी की परीक्षा में एक और मौका देने पर विचार करें.
अदालत ने केंद्र से कुछ अभ्यर्थियों की याचिका पर विचार करने के लिए कहा, जो कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद यूपीएससी सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में शामिल नहीं हो सके और अब एक अतिरिक्त प्रयास की मांग कर रहे हैं.
अदालत ने केंद्र सरकार को इन छात्रों को लेकर दो हफ्ते के भीतर फैसला करने को कहा है.
यूपीएससी के तीन प्रभावित परीक्षार्थियों की रिट याचिका पर जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस एएस ओका और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने संसदीय समिति की एक हालिया रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसमें कोरोना से प्रभावित छात्रों को अतिरिक्त मौके देने की सिफारिश की गई है.
मालूम हो कि संसदीय समिति ने 24 मार्च की रिपोर्ट में कहा था कि कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर के दौरान छात्र समुदाय को होने वाली कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए सरकार को अपना विचार बदलने और सिविल सेवा परीक्षा (सीएसई) उम्मीदवारों की मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने और सभी उम्मीदवारों को संबंधित आयु छूट के साथ एक अतिरिक्त प्रयास प्रदान करने की सिफारिश करती है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा, ‘याचिकाकर्ताओं ने 24 मार्च 2022 की संसदीय समिति की रिपोर्ट पर भरोसा किया. इन सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए हमने दो हफ्ते के भीतर केंद्र से इस मामले पर उचित रूप से विचार करने को कहा है. इस पर प्रशासन को फैसला लेने दें.’
बता दें कि 30 मार्च को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि याचिकाकर्ताओं के आग्रह पर अतिरिक्त मौके नहीं दिए जा सकते और इसके साथ ही केंद्र ने इन याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी.
केंद्र सरकार ने कहा था कि परीक्षा के लिए आयु सीमा बढ़ाना और अतिरिक्त मौके देने से अन्य श्रेणियों के लोगों द्वारा भी दावे किए जा सकते हैं.
केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि इस तरह के अतिरिक्त मौके देने से परीक्षा के बाद की गतिविधियां पूरी तरह से पटरी से उतर जाएंगी. इससे अन्य परीक्षाओं की शेड्यूल पर भी गलत प्रभाव पड़ेगा.
केंद्र सरकार के दावों के जवाब में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने पिछले साल आयोजित प्रीलिम्स (प्रारंभिक) की परीक्षा पहले ही पास कर ली है, लेकिन वे क्वारंटीन नियमों सहित कोविड-19 से प्रभावित होने के संबंध में सरकार के मौजूदा नियमों की वजह से वे जनवरी में यूपीएससी मेन्स (मुख्य) की परीक्षा में शामिल नहीं हो सके थे.
इन तीन याचिकाकर्ताओं में से दो मेन्स परीक्षा के कुछ पेपर में शामिल हुए थे, लेकिन एक अन्य याचिकाकर्ता एक पेपर नहीं दे पाया था. अदालत ने भी सहमति जताई कि मेडिकल सर्टिफिकेट से इन याचिकाकर्ताओं के दावों की पुष्टि होती है.
केंद्र सरकार की इस दलील का विरोध करते हुए कि एक अतिरिक्त मौका देने से समस्याएं खड़ी हो सकती हैं. इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ‘हम अतिरिक्त मौके देकर राहत देने की मांग एक विशिष्ट श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए कर रहे हैं. इन उम्मीदवारों ने प्रीलिम्स की परीक्षा उत्तीर्ण की, जिसमें 10 लाख से अधिक परीक्षार्थियों ने हिस्सा लिया था. इनके लिए मेन्स की परीक्षा जीवन और मरण का सवाल है.’
मामले में हस्तक्षेपकर्ता के रूप में पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अदालत को संसदीय समिति की रिपोर्ट से अवगत कराया था.
इस पर पीठ ने पूछा, ‘क्या सरकार ने फैसला लेने से पहले इस पर (समिति की रिपोर्ट पर) विचार किया?’
केंद्र की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि उनके पास इस बारे में निर्देश नहीं हैं.
पीठ ने कहा, ‘आप इस सिफारिश के संदर्भ में इस पर विचार कर सकते हैं. सरकार अपना विचार बदल सकती है.’
पीठ ने याचिकाकर्ताओं और हस्तक्षेप करने वाले को प्राधिकरण को प्रतिवेदन देने को कहा, जो समिति की रिपोर्ट के संदर्भ में इस पर विचार करेगा.
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने इस मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है.