कोलकाता, 5 जून (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बांग्लादेश दौरे से पूर्व एक शीर्ष थिंक टैंक की तरफ से जारी रपट में इस बात पर जोर दिया गया है कि सीमा पर स्थित परिक्षेत्रों के निवासियों के लिए स्थायी पुनर्वास नीति की जरूरत है।
मोदी के दौरे के दौरान भारत और बांग्लादेश लंबे समय से लंबित भूमि सीमा समझौते (एलबीए) पर हस्ताक्षर करने वाले हैं तथा छह जून को शुरू हो रही उनकी यात्रा का मुख्य बिंदु एलबीए समझौता ही है।
ऐतिहासिक एलबीए के तहत 111 परिक्षेत्रों का हस्तांतरण होना है, जिसके अंतर्गत 17,160 एकड़ जमीन बांग्लादेश को सौंपना है, जबकि ढाका 7,110.02 एकड़ वाले 51 ऐसे परिक्षेत्र भारत को सौंपेगा।
फिलहाल इन परिक्षेत्रों में 51,000 लोग रहते हैं।
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की तरफ से जारी इंडिया-बांग्लादेश कनेक्टिविटी : पॉसिबिलिटीज एंड चैलेंजेज की रपट के अनुसार, समझौते के क्रियान्वयन के लिए काफी चिंतन-मनन की जरूरत है, क्योंकि इसके जरिए दोनों देश एक-दूसरे की सीमा में स्थित परिक्षेत्रों के आदान-प्रदान में समर्थ हो जाएंगे।
रपट के मुताबिक, “भारत को परिक्षेत्र प्राप्त होने के बाद देश में और लोग पहुंचेंगे। अत: इन लोगों की उचित और स्थायी पुनर्वास की जरूरत होगी, ताकि वे उस स्थान को जल्द से जल्द अपना सकें।”
राखाहरि चटर्जी की निगरानी में तैयार इस रपट के लिए शोध का काम गरिमा सरकार ने किया है और इसे लिखा है अनसुआ बसु रे चौधरी और प्रत्नश्री बसु ने। इस रपट में सीमा पार संपर्क के लाभ-हानि का मूल्यांकन किया गया है। साथ ही इस दौरान सुरक्षा, पर्यावरण, विस्थापन तथा पुनर्वास के जटिल विषयों को ध्यान में रखा गया है।
रपट में एलबीए पर रोशनी डालते हुए कहा गया है कि संधि से उम्मीद की जा रही है कि यह लोगों को बेहतर जीवन देने वाला होगा, जो अबतक मानवाधिकार से वंचित रहे हैं, जिनके पास न स्कूल है, न अस्पताल और न ही आधारभूत जरूरत की चीजें ही हैं।