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 सिकुड़ते पर्यावासों का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव | dharmpath.com

Monday , 25 November 2024

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सिकुड़ते पर्यावासों का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव

न्यूयॉर्क, 21 मार्च (आईएएनएस)। दुनिया भर में मौजूदा लगभग 70 फीसदी जंगलों के दायरे मात्र आधा मील रह गए हैं। जिसका अर्थ यह है कि शहरीकरण तथा कृषि के लिए उन्हें कभी भी इस्तेमाल किया जा सकता है। एक अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है।

वैश्विक पर्यावास विभाजन का विस्तृत अध्ययन साइंस एडवांसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, जिसके मुताबिक जंगलों में मौजूद पेड़-पौधों तथा दुनिया के पर्यावरण को कई खतरे हैं।

शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के जंगली क्षेत्र का नक्शा जुटाया और उसमें पाया कि कुछ ही वन क्षेत्र ऐसे हैं, जिनपर किसी प्रकार के मानवीय विकास खतरा नही है।

एनसी स्टेट विश्वविद्यालय के लेखक निक हदाद ने कहा, “इसमें कुछ छिपा नहीं है कि दुनिया के जंगल सिकुड़ रहे हैं। दुनिया में शेष लगभग 20 फीसदी जंगलों का दायरा किसी फुटबाल मैदान या लगभग 100 मीटर का रह गया है।”

हदाद ने कहा, “70 फीसदी जंगलों के दायरे आधा मील रह गए हैं। इसका मतलब है कि इनमें से किसी भी जंगल को जंगल नहीं माना जा सकता है।”

उन्होंने कहा, “प्रमुख परिणाम दुखद और विचलित करने वाला है। अंततोगत्वा पर्यावास क्षरण का प्रभाव मनुष्यों पर भी पड़ेगा। यह अध्ययन एक खतरे की घंटी है, जो बताता है कि हम पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं।”

सिकुड़ते पर्यावासों का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव Reviewed by on . न्यूयॉर्क, 21 मार्च (आईएएनएस)। दुनिया भर में मौजूदा लगभग 70 फीसदी जंगलों के दायरे मात्र आधा मील रह गए हैं। जिसका अर्थ यह है कि शहरीकरण तथा कृषि के लिए उन्हें कभ न्यूयॉर्क, 21 मार्च (आईएएनएस)। दुनिया भर में मौजूदा लगभग 70 फीसदी जंगलों के दायरे मात्र आधा मील रह गए हैं। जिसका अर्थ यह है कि शहरीकरण तथा कृषि के लिए उन्हें कभ Rating:
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