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 सारदा व रोज वैली घोटालों की कहानी | dharmpath.com

Thursday , 12 December 2024

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सारदा व रोज वैली घोटालों की कहानी

कोलकाता, 6 फरवरी (आईएएनएस)। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार व पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के बीच हालिया गतिरोध ने फिर से करोड़ों रुपयों के दो पोंजी घोटालों -सारदा व रोज वैली- को राजनीतिक चर्चा में ला दिया है।

ऐसे में जब लोकसभा चुनाव बमुश्किल कुछ महीनों दूर हैं, दोनों घोटाले सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्यों ओडिशा व असम में भी प्रमुख मुद्दे के रूप में उभरे हैं।

यहां दोनों घोटालों पर डोजियर व इन मामलों में जांच के तथ्य प्रस्तुत हैं।

सारदा घोटाला : सारदा ग्रुप की स्थापना 2006 में हुई। सारदा ग्रुप के प्रमुख सुदीप्त सेन ने चिट फंड व विभिन्न सामूहिक निवेश योजनाओं के जरिए 3,500 करोड़ रुपये 17 लाख निवेशकों से जुटाए। ये निवेशक पश्चिम बंगाल, असम, झारखंड व ओडिशा से थे। यह समूह अप्रैल 2013 में बर्बाद हो गया।

समूह ने अपना ब्रैंड मीडिया व सीएसआर (कॉरपोरेश सोशल रिस्पांसबिलिटी) परियोजनाओं के जरिए बनाया था। समूह के राजनेताओं के साथ करीबी संबंध थे।

आयकर व प्रवर्तन निदेशालय ने घोटाले व दूसरे पोंजी योजनाओं के खिलाफ जांच शुरू की।

साल 2013 में घोटाले के उजागर होने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राजीव कुमार की अगुवाई में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था।

राजीव कुमार मौजूदा समय में कोलकाता पुलिस आयुक्त हैं और हालिया केंद्र व राज्य सरकार के बीच विवाद के घेरे में हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने सारदा व दूसरी पोंजी योजनाओं की जांच 2014 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी थी। अदालत ने अंतर-राज्यीय संबंध व संभावित अंतर्राष्ट्रीय धन शोधन का हवाला देते हुए जांच सीबीआई को सौंपी थी।

सीबीआई ने इसमें 2,500 करोड़ रुपये की अनियमितता पाई और विभिन्न राज्यों में करीब 1,000 करोड़ रुपये की संपत्तियां कुर्क कीं।

सुदीप्त सेन को घोटाले का मुख्य सरगना माना जाता है। सुदीप्त सेन जमाकर्ताओं द्वारा न्याय मांगने के लिए सड़कों पर उतरने के बाद भाग गया। सुदीप्त सेन को जम्मू एवं कश्मीर के गुलमर्ग से गिरफ्तार किया गया।

मौजूदा समय में सुदीप्त सेन न्यायिक हिरासत में है।

सारदा समूह की एक निदेशक देबजानी मुखर्जी भी घोटाले के खुलासे के साथ सुदीप्त सेन के साथ भाग गई थी। देबजानी मुखर्जी को भी गुलमर्ग से गिरफ्तार किया गया।

देबजानी को कथित तौर पर चेक से एक लाख रुपये वेतन व एक लाख रुपये नकद दिए जाते थे। यह अन्य भत्तों व सुविधाओं के अतिरिक्त था। एसआईटी ने देबजानी के खिलाफ एक आरोप पत्र दायर किया है।

कुणाल घोष, सारदा समूह की मीडिया शाखा का मुख्य कार्यकारी अधिकारी था। घोष को बिधाननगर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120 बी (साजिश), 406 व 420 (धोखाधड़ी) के तहत गिरफ्तार किया। घोष को तृणमूल कांग्रेस ने निलंबित कर दिया। वह पत्रकार से नेता बने थे।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई ने मामले को अपने हाथ मे लिया और उसके बाद एजेंसी ने सेन, मुखर्जी व घोष के नाम से आरोप पत्र दाखिल किया। घोष को अक्टूबर 2016 में अंतरिम जमानत मिल गई।

रजत मजूमदार : पश्चिम बंगाल के पूर्व डीजीपी (सशस्त्र पुलिस) मजूमदार का नाम घोटाले में सामने आया और सीबीआई ने उसे सितंबर 2014 में गिरफ्तार किया। मजूमदार को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने फरवरी 2015 में सशर्त जमानत दे दी।

श्रीनजॉय बोस : तृणमूल कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सदस्य व पार्टी के मुखपत्र जागो बंगला के पूर्व संपादक को सीबीआई ने नवंबर 2014 में गिरफ्तार किया। बोस फुटबाल क्लब मोहन बगान के प्रबंधन में शामिल था, जिसमें समूह ने कथित तौर निवेश किया है। इसके साथ ही ईस्ट बंगाल में भी निवेश किया गया था। बोस को जनवरी 2018 में जमानत दी गई।

मदन मित्रा : तृणमूल कांग्रेस के नेता व पश्चिम बंगाल के पूर्व मंत्री मित्रा को केंद्रीय एजेंसी ने दिसंबर 2014 में गिरफ्तार किया। वह वीडियो क्लिप में सारदा ग्रुप के प्रमुख सुदीप्त सेन की एक बैठक में तारीफ करते दिख रहे हैं। मित्रा को ममता बनर्जी के विश्वासपात्रों में से एक माना जाता है। मित्रा तृणमूल के संस्थापक सदस्यों में से हैं। मित्रा ने कथित तौर पर समूह से लाभ लिया। मित्रा को सितंबर 2016 में जमानत मिली।

देबब्रत सरकार : सीबीआई ने ईस्ट बंगाल क्लब के अधिकारी देबब्रत सरकार उर्फ नीतू को गुप्तचरों द्वारा उसके पास आपत्तिजनक दस्तावेज प्राप्त किए जाने के बाद गिरफ्तार किया।

सदानंद गोगोई : असमिया गायक सदानंद गोगोई को कथित तौर पर सारदा रियल्टी से धन व फर्जी कंपनी को असम में काम करने में मदद करने को लेकर संघीय एजेंसी ने उसे गिरफ्तार किया।

रोज वैली घोटाला :

रोज वैली पोंजी योजना घोटाला का खुलासा 2013 में हुआ। इस समूह का चेयरमैन गौतम कुंडू था। समूह ने कथित तौर पर 27 कंपनियां शुरू की थी। इसने कथित तौर पर पश्चिम बंगाल, असम व बिहार के जमाकर्ताओं से 17,520 करोड़ रुपये एकत्र किए थे। प्रवर्तन निदेशालय ने इसके रिसॉर्ट, होटलों व भूमि को कुर्क किया था, जिसकी कीमत 2,300 करोड़ रुपये थी। घोटाले से जुड़े मामले में आभूषणों के शोरूम की तलाशी के दौरान आपत्तिजनक दस्तावेज व सोने के आभूषण व कीमती पत्थर बरामद किए थे, जिसका मूल्य 40 करोड़ रुपये है।

गौतम कुंडू : सीबीआई ने धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत कुंडू को गिरफ्तार किया और उसके व कंपनी के खिलाफ 2014 में एक प्राथमिकी दर्ज की। उसे 2015 में गिरफ्तार किया गया और वह तभी से जेल में है।

सुदीप बंद्योपाध्याय : लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के नेता सुदीप बंद्योपाध्याय को सीबीआई ने कथित तौर पर समूह को विस्तार करने में मदद देने को लेकर गिरफ्तार किया गया। एजेंसी ने आईपीसी की धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 409 व 420 (धोखाधड़ी) के तहत एक आरोप पत्र दाखिल किया। सुदीप को ओडिशा उच्च न्यायालय द्वारा 2017 मई में जमानत मिल गई।

तापस पाल : अभिनेता व तृणमूल कांग्रेस सांसद तापस पाल को सीबीआई ने कथित तौर पर रोज वैली समूह की पोंजी योजनाओं को चलाने में मदद करने के लिए गिरफ्तार किया। एजेंसी के अनुसार तापस पाल को समूह के अवैध कारोबार को समर्थन देने के लिए भुगतान किया गया था। उसे फरवरी 2018 में जमानत मिली।

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