Sunday , 22 September 2024

ब्रेकिंग न्यूज़
Home » धर्मंपथ » सामना हुआ जब दो ब्रम्हास्त्रों का

सामना हुआ जब दो ब्रम्हास्त्रों का

Draupadi protects Ashwattamaमहाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था. कौरवों की ओर से केवल तीन महारथी हीं जीवित बचे थे – अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा. दुर्योधन की मृत्यु से दुखी अश्वत्थामा ने पांडवों को छल से मारने की प्रतिज्ञा की. उसने दुर्योधन को मरते हुए वचन दिया था कि जैसे भी हो वो पांचों पांडवों को अवश्य मार डालेगा. कृपाचार्य ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की पट अंततः उन्होंने भी उसका साथ देने की स्वीकृति भर दी. युद्ध के समाप्त होने के पश्चात् कृष्ण पाँचों पांडवों को गंगा तट पर जागरण के लिए ले गए थे और उनके शिविर में उनके पाँचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुत्कार्मन, शतानीक एवं श्रुतसेन सोए हुए थे. इसकी जानकारी अश्वत्थामा को नहीं थी. उसे लगा कि पांडव हीं वहां सोए हुए हैं. उन्होंने इस पाँचों को सोते हुए हीं पांडव समझ कर मार डाला और प्रसन्नतापूर्वक लौट गए. उनके साथ साथ उन्होंने वहां विश्राम कर रहे सरे योद्धाओं को मौत के घाट उतार दिया जिसमे ध्रिस्त्धुम्न और शिखंडी भी थे.

जब पांडव और द्रौपदी वापस आए तो उपने पुत्रों को मारा हुआ देख द्रौपदी विलाप करने लगी. उसके क्रोध का ठिकाना नहीं रहा. उसने पांडवों से कहा कि जब तक वो अश्वत्थामा का मारा हुआ मुख नहीं देख लेती वो अन्न जल ग्रहण नहीं करेगी. अश्वत्थामा को पकड़ने के लिए पांडव चल दिए जो भागता हुआ महर्षि व्यास के आश्रम में पहुँच चुका था. वहां पहुंचकर भीम ने उससे युद्ध कर उसे परस्त किया. अपने पिता आचार्य द्रोण के वरदान के कारण अश्वत्थामा अमर था. उसे ब्रम्हास्त्र का ज्ञान भी था. उसने पांडवों को समाप्त करने के लिए उनपर ब्रम्हास्त्र चला दिया. पांडवों में ब्रम्हास्त्र का ज्ञान केवल अर्जुन को था. जब कृष्ण ने देखा कि ये ब्रम्हास्त्र पांडवों को मार कर हीं रहेगा तो उन्होंने विवश होकर अर्जुन से भी ब्रम्हास्त्र चलने को कहा क्योंकि एक ब्रम्हास्त्र का सामना केवल दूसरा ब्रम्हास्त्र हीं कर सकता था लेकिन इससे पूरी पृथ्वी का विनाश हो जाता. जब महर्षि व्यास ने देखा कि दोनों ब्रम्हास्त्र टकराने हीं वाले हैं तो उन्होंने देवर्षि नारद की सहायता से दोनों ब्रम्हास्त्रों को रोक दिया. उन्होंने अर्जुन और अश्वत्थामा को समझाया कि इससे पूरी पृथ्वी का विनाश हो जाएगा और उनदोनो को अपना ब्रम्हास्त्र वापस लेने को कहा. उनकी आज्ञा मान कर अर्जुन ने तो अपना ब्रम्हास्त्र वापस ले लिए किन्तु अश्वत्थामा ब्रम्हास्त्र को वापस लेने कि कला नहीं जानता था. महर्षि व्यास ने कहा कि अगर वो अपना ब्रम्हास्त्र वापस नहीं ले सकता तो उसकी दिशा बदल कर उसके प्रभाव को सीमित कर दे. बदले की भावना में जलते अश्वत्थामा ने अपने ब्रम्हास्त्र की दिशा बदल कर उसे अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर गिरा दिया जिससे उसके गर्भ से एक मृत शिशु का जन्म हुआ.

उसके इस कृत्य से पांडव बड़े क्रोधित हुए. वो ब्राम्हण था और अमर भी इस लिए वो उसका वध तो नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने उसके मस्तक की मणि लेकर उसे आजीवन भटकने के लिए छोड़ दिया. बाद में कृष्ण की कृपा से उस शिशु को नया जीवनदान मिला जिससे उसका नाम जन्मेजय पड़ा.

सामना हुआ जब दो ब्रम्हास्त्रों का Reviewed by on . महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था. कौरवों की ओर से केवल तीन महारथी हीं जीवित बचे थे - अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा. दुर्योधन की मृत्यु से दुखी अश्वत्थामा महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था. कौरवों की ओर से केवल तीन महारथी हीं जीवित बचे थे - अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा. दुर्योधन की मृत्यु से दुखी अश्वत्थामा Rating:
scroll to top