नई दिल्ली, 24 नवंबर – सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के निर्वासित चल रहे अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन द्वारा इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में फ्रेंचाइजी के मालिकाना हक को लेकर हितों के टकराव पर जवाब मांगा। न्यायालय ने कहा कि बीसीसीआई का अध्यक्ष रहते हुए श्रीनिवासन आईपीएल की एक टीम के मालिक भी हैं तो यह हितों के टकराव का मामला कैसे नहीं बनता।
गौरतलब है कि श्रीनिवासन इंडिया सीमेंट्स कंपनी के प्रबंध निदेशक हैं और कंपनी के पास आईपीएल की चेन्नई सुपर किंग्स टीम का स्वामित्व है।
न्यायमूर्ति टी. एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलिफुल्ला की पीठ ने कहा, “आप बीसीसीआई को प्रबंधित कर रहे हैं। आईपीएल में आपकी एक टीम है। क्या यह हितों का टकराव नहीं है।”
सर्वोच्च न्यायालय ने आईपीएल को बीसीसीआई के अधीन मानते हुए ये बातें कहीं।
श्रीनिवासन के हितों की टकराव की स्थिति में होने पर स्पष्टीकर मांगे जाने पर श्रीनिवासन की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि मेरा हित सिर्फ इसमें है कि ‘मेरी टीम अवश्य जीतनी चाहिए।’
इस पर न्यायालय ने कहा, “बीसीसीआई का गठन किसने किया। बीसीसीआई का एक अध्यक्ष होता है। क्या आप यह कहना चाह रहे हैं कि बीसीसीआई द्वारा निर्णय लिए जाते समय अध्यक्ष श्रीनिवासन मूकदर्शक बने रहे और अपने विचार ही व्यक्त नहीं किए?”
बीसीसीआई की तरफ से उपस्थित वरिष्ठ वकील सी. ए. सुंदरम ने कहा कि बीसीसीआई राज्य स्तर की 21 क्रिकेट बोर्ड का प्रतिनिधित्व करती है और इन सभी क्रिकेट बोर्डो के पास अपने अधिकार हैं। सुंदरम ने बताया कि आईपीएल मैच प्रारूप में होने वाला आयोजन है और बीसीसीआई का ही हिस्सा है।
श्रीनिवासन की कंपनी इंडिया सीमेंट्स द्वारा आईपीएल की टीम खरीदने को सही ठहराते हुए सुंदरम ने कहा, “आईपीएल जब शुरू हुआ तो यह वाणिज्यिक तौर पर काफी सफल रहा था।”
सुंदरम ने कहा कि बड़ी संख्या में लोगो की आजीविका आईपीएल से आती है इसलिए इसे बंद नहीं किया जाना चाहिए।
सुंदरम ने कहा कि भारत में क्रिकेट अंतर्राष्ट्रीय पहचान हासिल कर चुका है और न्यायालय को फैसला सुनाते समय इसका ध्यान रखना चाहिए।
सुंदरम की दलीलों में न्यायालय ने सुंदरम से कहा, “खेल को यह पहचान कैसे मिली? लाखों लोगों ईडन गरडस में बैठकर ये मैच देखते हैं।”
न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा, “तो यह पारस्परिक रूप से लाभ देने वाला समाज बनाता है। यह खेल धर्म का रूप ले चुका है। लाखों की संख्या में लोग इसके दीवाने हैं, जबकि उनका इसमें कोई लाभ नहीं है और न ही उन्हों इस पर सट्टा लगाया हुआ है।”
न्यायमूर्ति ठाकुर ने आगे कहा, “अगर हम इसे ऐसे ही चलते रहने देते हैं तो इस खेल का सत्यानाश हो जाएगा। सभ्या नागरिकों की तरह खेल भावना से खेले जाने के कारण ही इसे प्रोत्साहन मिलता है।”
उन्होंने कहा, “अगर लोगों का खेल से विश्वास हट गया तो यह खेल खत्म हो जाएगा।”
न्यायालय ने कहा कि संदेह का लाभ खेल को मिलना चाहिए न कि व्यक्ति विशेष को।