नई दिल्ली, 20 मार्च (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को उस याचिका पर पर सुनवाई करने से मना कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार को ‘श्रीमद्भगवद् गीता’ को राष्ट्रीय धर्मग्रंथ घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। अदालत ने कहा कि पवित्र हिंदू ग्रंथ को लेकर अलग-अलग मतों के लोग भिन्न आस्था रखते हैं।
याची वकील एम. के. बालकृष्णन से अदालत ने कहा कि उनके द्वारा की गई निर्देश की मांग अदालत के दायरे से परे है। प्रधान न्यायाधीश एच.एल. दत्त, न्यायमूर्ति एम.वाई. इकबाल और न्यायमूर्ति अरुण मिश्र ने कहा, “एक व्यक्ति सोच सकता है कि यह मेरे लिए पवित्र ग्रंथ है तो दूसरा किसी अन्य ग्रंथ के बारे में यह कह सकता है।”
शीर्ष अदालत ने कहा, “हर आदमी की पवित्र ग्रंथ के बारे में अलग मानसिकता है। फिर कैसे हम दिशानिर्देश दे सकते हैं। लोगों के पास इस बात को सोचने की क्षमता है कि वे क्या पढ़ना चाहते हैं।”
जनहित याचिका (पीआईएल) को निरस्त करते हुए अदालत ने बालकृष्णन को ‘गीता’ का उपदेश याद दिलाया ‘परिणाम की चिंता किए बगैर आप काम करें।’
गीता के इसी उपदेश पर फिल्म ‘संन्यासी’ का एक गीत है- “कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर ऐ इंसान, जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान।”