नई दिल्ली, 17 अगस्त (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से सरकारी विज्ञापनों की निगरानी के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने की दिशा में अब तक उठाए गए कदमों पर सोमवार को जवाब मांगा।
नई दिल्ली, 17 अगस्त (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से सरकारी विज्ञापनों की निगरानी के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने की दिशा में अब तक उठाए गए कदमों पर सोमवार को जवाब मांगा।
गैर सरकारी संगठन, सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने याचिका दायर कर दिल्ली और तमिलनाडु सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही करने का आग्रह किया है। संस्था का कहना है कि इन दोनों सरकारों ने अपने विज्ञापनों में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और जे. जयललिता के फोटो लगाकर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश का उल्लंघन किया है। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एन.वी.रमना की पीठ ने इस याचिका पर नोटिस जारी किया है।
याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पूछा कि सरकारी विज्ञापनों की निगरानी के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने के मामले में क्या प्रगति हुई है। समिति अगर नहीं बनी है तो केंद्र सरकार ऐसा न हो पाने की वजह बताए।
याचिका दायर करने वाली संस्था के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि दोनों सरकारों का विज्ञापन सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश का घोर उल्लंघन है। इन विज्ञापनों का मकसद आत्म प्रशंसा और अपनी विरोधी राजनैतिक पार्टियों की खराब छवि को पेश करना था।
तमिलनाडु सरकार के वकील राकेश द्विवेदी ने अवमानना याचिका के विरोध की कोशिश की। इस पर अदालत ने कहा, “आप हमें क्यों उकसा रहे हैं? हमने आपको नोटिस नहीं जारी किया है। कहने के लिए बहुत कुछ है।”
13 मई के अपने आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि सरकारी विज्ञापनों पर सिर्फ प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश, दिवंगत राष्ट्रीय नेताओं के फोटो ही लग सकते हैं। इसी आदेश में सरकारी विज्ञापनों की निगरानी के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाने की बात कही गई थी।