महाराजा अग्रसेन अग्रवाल जाति के
पितामह थे। वे युग पुरुष, रामराज्य के समर्थक एवं महादानी थे। उनमें अलौकिक साहस,
अविचल दृढ़ता गम्भीरता, अद्भुत सहनशिलता दूरदर्शिता, विस्तृत दृष्टिकोण गुण विद्यमान
थे। इनका जन्म मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम की चौंतीसवी पीढ़ी में सूर्यवशीं
क्षत्रिय कुल के महाराजा बल्लभसेन के घर में द्वापर के अन्तिमकाल और कलियुग के
प्रारम्भ में आज से लगभग 5200 वर्ष पुर्व हुआ था।महाराज अग्रसेन के जन्म के समय
गर्ग ऋषि ने महाराज वल्भव से कहा कि यह बहुत बड़ा राजा बनेगा इस के राज्य में एक नई
शासन व्यवस्था उदय होगी और हजारो वर्षो के बाद भी इनका नाम अमर होगा इनका विवाह
राजकुमारी माधवी, नागराज की सुपुत्री से हुआ| इस विवाह में दो अलग – अलग संस्कृति
एक हो गए | महाराज अग्रसेन सूर्यवंशी थे और माधवी जी नागवंशी थीं | देवराज इन्द्र
पहले ही राजकुमारी माधवी से विवाह करना चाहते थे | इस विवाह के बाद इन्द्र महाराज
अग्रसेन से नाराज थे और इर्ष्या करने लगे | बदले की भावना से इन्द्र ने प्रतापनगर
में वर्षा नहीं होने दी | इस कारण प्रतापनगर में अकाल पड़ गया और अग्रसेन जी ने
इन्द्र से युद्ध छेड़ दिया | इसके बाद काशी में अग्रसेन जी ने महादेव की आराधना की |
तप से प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए और महाराज अग्रसेन से माता महालक्ष्मी की
आराधना करने को कहा | अग्रसेन जी ने माता महालक्ष्मी का ध्यान करना शुरू किया |
माता महालक्ष्मी प्रकट हुईं और उन्हें अपनी प्रजा की भलाई के लिए वैश्य संस्कृति
अपनाने और एक नया राज्य स्थापित करने को कहा |
लक्ष्मी जी ने महाराज अग्रसेन और
उनके वंश को खुशहाली के लिए वरदान दिया | माता महालक्ष्मी का आशीर्वाद पा कर महाराज
अग्रसेन एवं महारानी माधवी अपने नए राज्य की स्थापना के लिए स्थान की खोज करने के
लिए पूरे भारत का दौरा किया | तभी दोनों ने एक स्थान पर शेर और लोमडी के कुछ बच्चों
को एक साथ खेलते हुए देखा| महाराज अग्रसेन और महारानी माधवी को यह स्थान “वीरभूमि”
प्रतीत हुआ और उन्होंने इस स्थान पर अपने नए राज्य अग्रोहा की स्थापना की|
महालक्ष्मी की कृपा से महाराज अग्रसेन के 18 पुत्र हुए। राजकुमार विभु उनमें सवसे
बडे थे, महर्षी गर्ग ने राजा अग्रसेन को अठारह पुत्रो के साथ 18 यज्ञ करने का
संकल्प कराया। प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयं गर्ग ॠषि बने, राजकुमार विभु को दीक्षित
कर उन्हे गर्ग गोत्र से मंत्रित किया। इसी प्रकार दूसरा यज्ञ गोभिल ॠषि ने करवाया
और दूसरे पुत्र को गोयल गोत्र दिया। तीसरे यज्ञ में गौतम ॠषि ने गोयन गोत्र धारण
करवाया। चौथे में वत्स ॠषि ने बंसल गोत्र, पांचवे में कौशिक ॠषि ने कंसल गोत्र, छठे
में शांडिल्य ॠषि ने सिंघल गोत्र, सातवे में मंगल ॠषि ने मंगल गोत्र, आठवे में
जैमिन ॠषि ने जिंदल गोत्र, नवे में ताड्य ॠषि ने तिंगल गोत्र, दसवे में और्व ॠषि ने
ऐरण गोत्र, ग्यारहवे में धौम्य ॠषि ने धारण गोत्र, बारहवे में मुदगल ॠषि ने मधुकुल
गोत्र, तेरहवे में वशिष्ठ ॠषि ने बिंदल गोत्र, चौदहवे में मैत्रेय ॠषि ने मित्तल
गोत्र, पद्रहवे में कश्यप ॠषि ने कुच्छल गोत्र, और अठारहवे में नगेन्द्र ॠषि ने
नागल गोत्र से अभिमन्त्रित किया। ॠषियो द्वारा प्रदत अठारह गोत्रो को महाराजा
अग्रसेन के 18 पुत्रो के साथ महाराजा द्वारा बसायी 18 बस्तियो के निवासियो ने भी
धारण कर लिया। एक बस्ती के साथ प्रेम भाव बनाये रखने के लिये एक सर्वसम्मत निर्णय
हुआ कि अपने पुत्र व पुत्री का विवाह अपनी बस्ती में नही कर दूसरी बस्ती में करेगे।
आगे चलकर यह व्यवस्था गोत्रो में बदल गयी जो आज भी अग्रवाल समाज में प्रचिलित है।
अग्रवालों के गोत्र
1 गर्ग 7 मंगल 13 बिंदल
2 गोयल 8 जिंदल 14 मित्तल
3 गोयन 9 तिंगल 15 तायल
4 बंसल 10 ऐरण 16 भंदल
5 कंसल 11 धारण 17 नागल
6 सिंहल 12 मधुकुल 18 कुच्छल