रांची, 6 मई (आईएएनएस)। वरिष्ठ कवयित्री गगन गिल ने कहा कि हमारी सभ्यता ने सबको अपनी-अपनी आस्था के साथ जीने का हक दिया है। जो साहित्य मनुष्यता के पक्ष में हो, उसे हमेशा याद किया जाएगा। कबीर को पढ़ते हुए जुलाहा याद नहीं रहता, उनके दोहे याद रहते हैं।
दैनिक जागरण की मुहिम ‘हिंदी हैं हम’ के अंतर्गत रांची के कचहरी चौक स्थित राज रेसीडेंसी में आयोजित जागरण वार्तालाप में वरिष्ठ कवयित्री गगन गिल ने ‘समकालीन कविता के बिम्ब’ विषय पर कवयित्री और समीक्षक लताश्री से बातचीत की।
गगन ने कहा, “साहित्य में मुद्दे या विमर्श अस्थायी होते हैं। मुद्दे तो आते-जाते रहेंगे। हमें लगातार पढ़ना चाहिए। जितना पढ़ेंगे उतना अच्छा, उथले को गहरे से अलग करते जाएंगे। अच्छा साहित्य क्या है, यह आप को खुद समझना होगा और यह तब होगा, जब आप गुलशन नंदा को भी पढ़ेंगे और दूसरे को भी।”
उन्होंने कहा, “चौदह साल बाद मेरी तीन किताबें प्रकाशित हो रही हैं। एक कविता और दो गद्य पुस्तकें। 14 साल का लंबा गैप। इन 14 सालों में बहुत कुछ बदला। जीवन से लेकर समाज स्तर पर। इन 14 सालों में एकांत में रही हूं। समाज से एकांत में। ये कविताएं प्रार्थना की तरह लिखी गई हैं। एकांत की प्रार्थनाएं, लेकिन लेखक का एकांत नहीं होता। जीवन जटिल होता है और इसी तरह शुरू होती हैं यात्राएं।”
गगन गिल ने कहा कि समाज में घट रही घटनाओं से बचा नहीं जा सकता। ये अलग-अलग असर करती हैं। 30 साल पहले की कविता और आज की कविता में बेशक अंतर होगा।
उन्होंने कहा, “उस समय मैं नितांत युवा लड़की थी। तब बहुत संभलकर चलना होता था। अब भी बेटियां संभल-संभलकर चलती हैं।”
जागरण वार्तालाप मासिक आयोजन है, जिसमें लेखकों के साथ उनकी नवीनतम कृति पर बातचीत की जाती है।