हर वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से पंचांग बदल जाता है और आरंभ होता है नया संवत्। संवत् की शुरूआत के साथ शुरू होता है नौ दिनों तक चलने वाला दुर्गा उपासना का व्रत नवरात्र। इसका कारण यह है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना का काम इसी दिन से शुरू किया था। ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण की प्रेरणा देने वाले भगवान विष्णु थे।
देवी पुराण में बताया गया है कि सृष्टि के आरंभ से पहले अंधकार का साम्राज्य था। उस समय आदि शक्ति जगदम्बा देवी कुष्मांडा के रूप में वनस्पतियों एवं सृष्टि की रचना के लिए जरूरी चीजों को संभालकर सूर्य मण्डल के बीच में विराजमान थी। सृष्टि रचना का जब समय आया तब इन्होंने ही ब्रह्मा विष्णु एवं भगवान शिव की रचना की।
इसके बाद सत्, रज और तम गुणों से तीन देवियों को उत्पन्न किया जो सरस्वती, लक्ष्मी और काली रूप में प्रकट हुई। सृष्टि चलाने में सहायता प्रदान करने के लिए आदि शक्ति ने ब्रह्मा जी को सरस्वती, विष्णु को लक्ष्मी एवं शिव को देवी काली सौंप दिया।
आदि शक्ति की कृपा से ही ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता बने, विष्णु पालनकर्ता और शिव संहारकर्ता। देवी की कृपा से ही सृष्टि निर्माण काम पूरा हुआ इसलिए सृष्टि के आरंभ की तिथि के दिन से नौ दिनों तक आदिशक्ति के नौ रूपों की पूजा होती है। नवरात्र पूजा के साथ देवी से कामना की जाती है कि जिस तरह सृष्टि निर्माण का कार्य सफल हुआ उसी प्रकार नया संवत् भी सफल और सुखद रहे।