कोलंबो, 19 अगस्त (आईएएनएस)। श्रीलंका में नई सरकार को बहुत सावधानीपूर्वक काम करने की सलाह दी गई है। एक अखबार ने लिखा है कि संसदीय चुनाव में मतदाताओं ने किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत नहीं दिया क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे नेताओं का दिमाग खराब हो जाता है और उन पर सत्ता का नशा सवार हो जाता है।
‘हैप्पी जंबोस’ ने बुधवार को अपने संपादकीय में लिखा, लोगों ने राय दे दी है और उनका संदेश बिलकुल साफ है।
संपादकीय में लिखा गया है, “लेकिन, लोगों ने किसी को बहुमत नहीं दिया है। शायद उन्हें लगता है कि बहुमत से नेताओं का दिमाग फिर जाता है और वे सत्ता के नशे में चूर हो जाते हैं। नई सरकार 2010 में 114 सीट जीतने वाले युनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम अलायंस (यूपीएफए) के अंजाम तक अगर नहीं पहुंचना चाहती तो उसे जनभावनाओं का ख्याल रखना होगा और सोच समझकर काम करना होगा। यूपीएफए खुद को मिले जनादेश को संभाल नहीं सका था और उसका पतन हो गया।”
अखबार ने लिखा है कि प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने अपने उन आलोचकों का मुंह बंद कर दिया है जो उनके और उनकी युनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के जीतने की क्षमता पर सवाल उठाते थे और उन्हें परास्त करने की कोशिशें भी करते थे।
अखबार ने लिखा है, “सही है कि वह (विक्रमसिंघे) 2005 में महिंदा राजपक्षे को हरा नहीं सके थे। 2010 में उन्होंने हार के डर से चुनाव से दूरी बना ली थी। लेकिन 10 साल के बाद उन्होंने राजपक्षे पर जीत दर्ज की है। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है और उन्हें बधाई दी जानी चाहिए।”
अखबार ने लिखा है कि रानिल विक्रमसिंघे की यूएनपी सरकार ने बीते एक साल में अपने पत्तों को ठीक से फेंटा। सरकार की कई कमियां रहीं लेकिन यह जनभावनाओं से कटी नहीं रही। इसे फिर से सरकार बनाने का अवसर मिला है और इसे इसका सदुपयोग करना चाहिए। अपनी पूर्ववर्ती सरकारों के कामकाज से सबक सीखना चाहिए।
अखबार ने लिखा है, “(राजपक्षे के नेतृत्व वाले ) यूपीएफए को खुद को तीखे आंतरिक संघर्षो और कानूनी पचड़ों से जूझने के लिए तैयार करना होगा। इससे भी बड़ी बात यह कि उसे निराशा से भरे शरद का सामना करना होगा। दूसरी तरफ यूएनपी के सामने लोगों से किए गए वादों को पूरा करने की विशाल चुनौती है। लोगों की उम्मीदें हिलोरे मार रही हैं और नई सरकार को इसके हिसाब से प्रदर्शन करना होगा। “