भोपाल, 22 सितंबर (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य में एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग न होने देने और बगैर जांच के किसी की गिरफ्तारी नहीं होने देने का ऐलान कर नई बहस को जन्म तो दे दिया, लेकिन अब अपने ही बयान को दोहराने से शिवराज बच रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि शिवराज ने अपने ही गले में घंटी तो नहीं बांध ली!
भोपाल, 22 सितंबर (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य में एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग न होने देने और बगैर जांच के किसी की गिरफ्तारी नहीं होने देने का ऐलान कर नई बहस को जन्म तो दे दिया, लेकिन अब अपने ही बयान को दोहराने से शिवराज बच रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि शिवराज ने अपने ही गले में घंटी तो नहीं बांध ली!
सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि एससी/एसटी एक्ट के तहत तब तक गिरफ्तारी न हो, जब तक जांच पूरी नहीं होती। मगर इस फैसले के विरोध में देशव्यापी उग्र प्रदर्शनों के बाद केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को अध्यादेश के जरिए बदला और संविधान में संशोधन कर व्यवस्था कर दी कि शिकायत लिखाते ही मामला दर्ज कय् आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा और उसे छह माह तक जमानत नहीं दी जाएगी।
इस बीच सवर्णो के लगातार आंदोलन और उनके गुस्से को देखते हुए मुख्यमंत्री ने अपनी ही पार्टी की केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ बयान दे दिया है और सवाल उठने पर अपनी बात को दोहराने से परहेज करने लगे हैं।
मप्र उच्च न्यायालय के पूर्व महाधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ने आईएएनएस से कहा, “संसद द्वारा किया गया संशोधन देश में लागू होता है, संविधान में हर व्यक्ति के अधिकार व सीमाएं तय हैं, इसके चलते कोई भी मुख्यमंत्री संविधान के खिलाफ बात नहीं कर सकता। साथ ही जो बात मुख्यमंत्री ने कही है, उसे वे अमल में नहीं ला सकते। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वोट की राजनीति के चलते समाज में विभेद और बंटवारा किया जा रहा है।”
देश के वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने यहां संवाददाताओं के सवाल पर कहा, “कोई भी व्यक्ति संविधान से ऊपर नहीं हो सकता। संसद में अध्यादेश के जरिए संशोधन किया गया है। जहां तक शिवराज सिंह चौहान की बात है, उन्होंने सिर्फ बयान ही तो दिया है। जैसा उन्होंने कहा है, वैसा कर नहीं पाएंगे, यह बात वह भी अच्छी तरह जानते हैं।”
वहीं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह का कहना है कि मुख्यमंत्री ने जो बात कही है, उसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
केंद्र सरकार द्वारा अधिनियम में किए गए संशोधन के बाद मध्यप्रदेश में सवर्णो ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आलम यह है कि राज्य के किसी न किसी हिस्से से लगातार विरोध प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं। जो करणी सेना ‘पद्मावत’ फिल्म का विरोध करने के बाद विश्राम कर रही थी, वह एक बार फिर से सड़कों पर उतर आई है।
भाजपा और कांग्रेस, दोनों के जनप्रतिनिधियों को विरोध का सामना करना पड़ रहा है। निशाने पर सबसे ज्यादा भाजपा के नेता और मुख्यमंत्री चौहान रहे हैं। चौहान की जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान कहीं पथराव तो कहीं, काले झंडे दिखाए गए।
संस्कृति बचाओ मंच के संभाग संयोजक ऐश्वर्य पांडे का कहना है कि सवर्णो के बढ़ते विरोध के चलते मुख्यमंत्री डर गए और उन्होंने शिकायत की जांच के बाद गिरफ्तारी की बात कह दी है, मगर सवाल यह उठता है कि क्या केंद्र सरकार द्वारा संविधान में किए गए संशोधन पर कोई राज्य सरकार सिर्फ ‘जुबान चलाकर’ बदलाव कर सकती हैं? यह तो लोगों में भ्रम पैदा करने की कोशिश भर है, जो ज्यादा असर नहीं करने वाली।
वहीं संविधान और संसदीय कार्यप्रणाली के जानकार गिरिजा शंकर का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार संशोधन को पूरी तरह जनता के सामने नहीं रख पा रही है। भारतीय दंड विधान (सीआरपीसी) में यह प्रावधान है कि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद जांच अधिकारी जांच करे और जरूरी समझे तो गिरफ्तारी करे। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने जांच से पहले गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी, उसे संसद में अध्यादेश के जरिए बदला गया है। लिहाजा, सरकार को वास्तविकता सामने लानी चाहिए, जिसमें वह नाकाम रही है।
वर्तमान हालात को देखते हुए और मुख्यमंत्री चौहान के रुख में आए बदलाव से एक बात लगने लगी है कि चौहान ने कहीं गलत बयान तो नहीं दे दिया। ऐसा इसलिए, क्योंकि शुक्रवार की रात चौहान होशंगाबाद में थे और जब पत्रकारों ने उनसे पूर्व में दिए बयान और संविधान की व्यवस्था का जिक्र करते हुए प्रश्न किया तो वे हाथ जोड़ते हुए आगे बढ़ गए, जवाब नहीं दिया।
केंद्र के संशोधन के चलते राज्य की लगभग 80 फीसदी आबादी में भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ रही है। इससे भाजपा को लगता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में इससे उसे ज्यादा नुकसान हो सकता है। निचले स्तर से आ रही रिपोर्ट के आधार पर सरकार और संगठन दोनों संभलकर अपनी राय जाहिर कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री और पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष राकेश ने इस संबंध में तमाम नेताओं को दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए हैं। सभी से कहा गया है कि इस संशोधन और आंदोलनों पर कोई राय जाहिर न करें।
पार्टी के तमाम निर्देशों के बावजूद भाजपा के एक विधायक मोहन यादव तो ऐसे हैं, जिन्हें लगता है कि सवर्णो के इस आंदोलन के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है, जो प्रदेश और देश में अशांति फैलाना चाहती हैं।
मुख्यमंत्री अपनी घोषणा और जानकारों की राय के चलते सवालों के घेरे में हैं। शिवराज भले ही कुछ कहते रहें, मगर पुलिस को तो वही करना होगा जो व्यवस्था संविधान में है। यह तो ठीक वैसा ही है-‘दिल बहलाने के लिए गालिब यह ख्याल अच्छा है।’