अनिल सिंह(भोपाल)- “धर्म” और उसके स्वयंभू ठेकेदार,धर्म जो सनातन है, सहज है ,सरल है लेकिन आज के समय वह व्यक्तिगत आशाओं,लाभ उठाने और व्यक्तिगत मजबूती हेतु धर्म नाम का उपयोग करना एक सरल मार्ग हो गया है.
“कर्मश्री” नामक संस्था जो रामेश्वर शर्मा विधायक की है
इस संस्था के नीचे शर्मा जी धर्म जागरण के कार्य करते हैं,इनमे कवि सम्मेलन,यात्रा आदी तरह के कार्यक्रम होते हैं जो की धर्म के मूल भाव से कहीं भी सरोकर नहीं रखते.इनका उद्देश्य मात्र जन-भावना को जो धर्म से ज्यादा उद्दवेलित की जा सकती है और आप के प्रति भी श्रद्धा उत्पन्न करवाती है को बढा कर भीड़ तंत्र को अपनी ओर करना होता है.
शिवराज सिंह ओला पीडीतों के दुख मे सो नहीं पा रहे और उनके विधायक,महापौर कवि सम्मेलन करवा रहे
रामेश्वर जब विधायक नहीं थे तब कोई बात नहीं थी लेकिन अब ये जनता के प्रतिनिधि हैं,ओला यदि यही मदद राष्ट्रीय आपदा पीडितो को दे दी जाती तो यह उचित कदम कहा जाता लेकिन इन असंवेदनशील नेताओं का ध्यान इस ओर नहीं गया और हिन्दू नव-वर्ष के नाम पर कवि सम्मेलन के साथ झाँसी की मशहूर अतिशबाजी क्या शोभा देती है इन जन-प्रतिनिधियों को.इसमें विधायक रामेश्वर शर्मा,विधायक सुरेन्द्र नाथ सिंह,महापौर भी इस संवेदनहीनता में शामिल हैं.
क्या हम त्योहार भी ना मनाएं?कहा शर्मा ने
जब रामेश्वर शर्मा से हमने पूछा तब उन्होने कहा क्या त्योहार भी ना मनाये,भाई मनाइये लेकिन क्या यह तरीका होता है ,समाज का लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं या हिन्दू धर्म का.नव वर्ष और शक्ति पूजन प्रत्येक हिन्दू करता है चाहे आपदा आई हो या नहीं लेकिन स्थिति को देखते हुए,आज शिवराज जी ने ओला पीड़ितों की पीड़ा को देखते हुए इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने को कहा है लेकिन उनके विधायक क्या कर रहे हैं सबके सामने है .
शिवपुरी की आतिशबाजी भी इसमे है
संवेदनहीनता का यह आलम है की इस कार्यक्रम में आतिशबाजी भी की जेया रही है वह भी शिवपुरी से विशेष आतिशबाजी मंगाई गयी है,जिसका खर्च ही लाखों में है.चंद मिनटों मे लाखों रुपये इस आपदा के समय धर्म के नाम पर फूंक दिये जायेंगे और वे भूखी आँखें ना ही आतिशबाजी देख पायेंगी और ना ही उनकी भूख ही इससे मिटेगी.मिलेगा क्या सिर्फ इन नेताओं को अपने वोटरों के बीच वाह -वाही और अपनी दबंगई दिखाने का मौका.
खर्च कितना आयेगा पर बोले रामेश्वर शर्मा
जब हमने शर्मा से पूछा की खर्च कितना आयेगा इस पर वे बोले की 1.5 से 2 लाख.हम हतप्रभ रह गये इतना बड़ा आयोजन साथ में आतिशबाजी मात्र इतने काम रुपये में,मामा के शासन में क्या मंहगाई नहीं है? हंमारी पड़ताल से पता चला की 20 लाख के उपर खर्चा आयेगा और चंदा तो इससे कई गुना इकट्ठा हो रहा है.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महंत चन्द्रमादास का बयान
जब मुख्य-अतिथि महंत चन्द्रमादास से पूछा गया की आप इस राष्ट्रीय आपदा के वक्त किस तरह के कार्यक्रम के मुख्य-अतिथि बन रहे हैं तो उन्होने कहा की मुझे नहीं पता सुना है कवि-सम्मेलन है ,जब पूछा गया की क्या होगा उसमें तब वे बोले भाई धार्मिक कविताएं होनी चाहिये इसके अलावा और कुछ नहीं होना चाहिये,आपदा के समय क्या ऐसा कार्यक्रम सही है और धर्म को इससे क्या फायदा?क्या यही धर्म है?तब उन्होने कहा नहीं यह ठीक नहीं,चूंकि और लोग भी शामिल होंगे अतः मैं भी उसमे रहूँगा मुख्य अतिथि और हर वर्ष रहता हूँ.गौर मतलब यह रहा की उनके पास भी इस अव्यवस्था का कोई जवाब नहीं था,क्योंकि उन्होने इस सम्बंध में कुछ सोचा ही नहीं था.
उन्होने यह भी कहा की यदि यह पैसा पीड़ितों की मदद में दे दिया जाता तो ठीक था.सनातन में ऐसा ही है वह मानवता की सेवा के लिये है ना की दिखावे के लिये.
महापौर कितनी संवेदनशील हैं आप जानिये
भोपाल महापौर कृष्णा गौर से बात करना बहुत मुश्किल है जब भी उन्हे फोन करिये कोई विनय तिवारी नामक पुरुष फोन उठाता है और महापौर के व्यस्त रहने का बोल स्वयम् से अपनी बात कहने को कहता है,ये वही महापौर हैं जो पत्रकार नरेन्द्र शर्मा की मदद का वादा कर भी कुछ मदद कर के पीछे हट गयीं लेकिन इस तरह के असामाजिक कार्यों मे जिनमें इन्हे अपनी छवि बनाने का मौका मिलता है ये आयेज रहती हैं.मानवता पद पाते ही कहाँ गायब हो जाती है यह इन मूर्तियों को देख कर समझ आता है.
मित्रों,मानवता के साथ किस तरह धर्म के नाम पर खिलवाड़ किया जा रहा है इसे आपके सामने प्रस्तुत करने की कोशिश की है,किसी व्यक्ति विशेष के सम्बंध में नहीं यह लेख अपितु आज के सिस्टम पर प्रहार का एक प्रयास है,पद वही रहते हैं सिर्फ चेहरे बदल जाते हैं.मानवीय संवेदना के हत्यारों का यही है चाल,चरित्र और चेहरा.जिस संगठन से ये जुड़े हुए हैं उसे भी दरकिनार कर देते हैं स्वार्थ में.