बालाघाट, 17 जनवरी (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में सरकारी संग्रहालयों की माली हालत खराब देखकर एक शिक्षक ने अपने घर को ही लोक वाद्ययंत्रों का संग्रहालय बना डाला। इस संग्रहालय में 60 तरह के वाद्ययंत्र हैं, और सभी चालू हालत में हैं।
बालाघाट, 17 जनवरी (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में सरकारी संग्रहालयों की माली हालत खराब देखकर एक शिक्षक ने अपने घर को ही लोक वाद्ययंत्रों का संग्रहालय बना डाला। इस संग्रहालय में 60 तरह के वाद्ययंत्र हैं, और सभी चालू हालत में हैं।
यह अनोखा संग्रहालय बालाघाट जिले में है। इसे ज्ञानेश्वर भुडेश्वर ने बनाया है । इस संग्रहालय में जनजातियों द्वारा विभिन्न अवसरों पर इस्तेमाल किए जाने वाले वाद्ययंत्रों का संग्रह है। ज्ञानेश्वर के घर में वाद्ययंत्रों को सहेज कर रखा गया है, यहां का नजारा किसी संग्रहालय से कम नहीं है। प्रत्येक वाद्ययंत्र के निचले हिस्से में उसका नाम दर्ज है।
ज्ञानेश्वर के संग्रहालय में जितने भी वाद्ययंत्र उपलब्ध हैं, उन सबका वे इतिहास तो जानते ही हैं, साथ में उन्हें बजाने का हुनर भी है। वे कहते हैं कि पिछले 40 वर्षो की कोशिशों के बाद वे 60 तरह के वाद्ययंत्रों का संग्रह कर पाए हैं।
वे बताते हैं कि कई बार उन्हें विभिन्न संग्रहालय में जाने का मौका मिला, उन्होंने देखा कि वहां रखे गए वाद्ययंत्र जर्जर हालत में हैं और उन्हें बजाया नहीं जा सकता। वहां आने वाले विदेशी पर्यटक न तो उनकी आकृति से वाकिफ हो पाते हैं और न ही उसका स्वर सुन पाते हैं। इसके बाद उनके मन में विचार आया कि ऐसा संग्रहालय बनाया जाए, जहां चालू हालत में वाद्ययंत्रों को रखा जाए।
ज्ञानेश्वर बताते हैं कि उनकी यह कोशिश भारतीय संस्कृति को सहेजने की है, वे चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी इन वाद्ययंत्रों को जान सके। कौन-सा वाद्ययंत्र किस मौके पर बजाया जाता था और इसका ऐतिहासिक महत्व भी वे यहां आने वालों को बताते हैं। इन वाद्ययंत्रों की धुन कैसी होती है, इसे वे बजाकर भी बताते हैं।
संगीत के क्षेत्र में बढ़ते पाश्चात्य वाद्ययंत्रों की चर्चा करते हुए ज्ञानेश्वर कहते हैं कि पाश्चात्य वाद्ययंत्र में सिंथेसाइजर एक ऐसा यंत्र है, जिससे कई तरह के वाद्ययंत्रों की धुन निकाली जा सकती है, मगर उसकी धुन मूल वाद्ययंत्र से काफी अलग होती है। उदाहरण के तौर पर सिंथेसाइजर की बांसुरी की धुन, बांस की बांसुरी से निकली धुन से काफी अलग होती है ।
लोक वाद्ययंत्रों का यह संग्रहालय अपनी संस्कृति को सहेजने की दिशा में एक कारगर कदम है। यह नई पीढ़ी को इन वाद्ययंत्रों का इतिहास जानने में भी मददगार साबित होगा।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।