ब्यूरो(वाराणसी)– बाबा भूतभावन की नगरी में श्मशान में होता है नृत्य का आयोजन ,सदियों से यहाँ की वेश्याएँ और मुजरा करने वाली नर्तकियां इस नृत्य की शुरुआत हुई थी
सत्रहवी सताब्ती मैं काशी के राजा मानसिंह ने इस पौराणिक घाट पर भूत भावन भगवान् शिव जो इस शहर के आरद्य देव भी हैं के मंदिर का निर्माण कराया और साथ ही यहाँ करना चाहते थे संगीत का एक कार्यक्रम ! लेकिन ऐसे स्थान जहाँ चिताए ज़लती हों संगीत की सुरों को छेड़े भी तो कौन ? ज़ाहिर है कोई कलाकार यहाँ नहीं आया ! आई तो सिर्फ तवायफें !
ये धारणा भी आम हो गयी की बाबा भूत भावन की आराधना नृत्य के माध्यम से करने से अगले जानम मैं ऐसी त्रिरस्कृत जीवन से मुक्ति मिलती है ! गंगा जमुनी संस्कृति की मिसाल इस धरती पर सभी धर्मो की सेक्स वर्कर्स आती हैं जुबां पे बस एक ही ख्वाहिश लेकर !
काशी संसार की सबसे पुरानी नगरी है। विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है-काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता:।पुराणों के अनुसार यह आद्य वैष्णव स्थान है। काशी की महिमा विभिन्न धर्मग्रन्थों में गायी गयी है। काशी शब्द का अर्थ है, प्रकाश देने वाली नगरी। जिस स्थान से ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैलता है, उसे काशी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि काशी-क्षेत्र में देहान्त होने पर जीव को मोक्ष की प्राप्ति होती है, काश्यांमरणान्मुक्ति:।यह परंपरा नव्र्रात्रि की सप्तमी तिथि को पूरी की जाती है तथा औघड़ साधुओं के समक्ष नर्तकियां अपना नृत्य प्रस्तुत करती हैं और मोक्ष की प्रार्थना करती हैं,उनका परम विशवास है की इनके आशीर्वाद से नृत्य निखरता भी है और इस गंदे जीवन से मुक्ति भी मिलती है
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