नई दिल्ली, 5 अक्टूबर- प्रतिमाओं के विसर्जन के साथ ही पूर्ण हुई दुर्गा पूजा के बाद यमुना का हाल बेहाल है। जहां-तहां मिट्टी के टूटे बर्तन, तैरते फूल, तार-तार कपड़े और पानी में भीगे हुए रंग बिरंगे कागज के टुकड़ों से यमुना के किनारे ढंके हुए हैं।
यह दृश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस अभियान को मुंह चिढ़ा रहे हैं जिसके तहत उन्होंने भारत को गंदगी से मुक्त करने का प्रण लिया है। अगले पांच वर्षो भारत को गंदगी से मुक्ति दिलाने के संकल्प के साथ मोदी ने 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया था।
घाटों का दौरा कर कोई भी यह देख सकता है कि स्वच्छ भारत के लिए की गई प्रधानमंत्री की अपील का कितना असर है। नदी के घाट कूड़े-कचरों के ढेर के नीचे दबे हुए हैं।
बड़ी मात्रा में अघुलनशील कचरा जैसे लकड़ी के टुकड़े, प्लास्टिक और विषैली सामग्री नदी में तैर रहे हैं तो उसके घाटों पर चिप्स, बिसकुट के खाली पैकेट और प्लास्टिक की बोतलें जहां-तहां बिखरी पड़ी हैं। इन्हीं कचरों में खाने-पीने की चीजों की तलाश करते आवारा कुत्तों का झुंड भी वहां दिखता है।
जिन छह स्थलों पर प्रशासन ने मूर्ति विसर्जन की अनुमति दी है उनमें से एक कालिंदी कुंज में नाव चलाने वाले जमना सिंह (17) ने आईएएनएस से कहा, “घाटों की सफाई होने तक अगले कुछ दिनों तक ये यूं ही तैरते रहेंगे।”
नौका चालक के एक मित्र देवेंद्र ने कहा, “यह तो हर वर्ष की कहानी है। लोग प्रतिमाओं के साथ प्लास्टिक एवं अन्य खतरनाक पदार्थो को भी नदी में विसर्जित करते हैं।”
एक अनुमान के मुताबिक कालिंदी कुंज में प्रति वर्ष 200 से अधिक दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन होता है और अन्य पांच घाटों श्याम घाट, हाथी घाट, गीता घाट और गीता कॉलोनी, मयूर विहार के समीप के घाटों पर कम से कम 760 पंजीकृत प्रतिमाएं विसर्जित होती हैं।
यमुना नदी से दिल्ली की जल जरूरत का 70 प्रतिशत पूरा होता है। दो दशकों में इसकी सफाई पर करीब 1500 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। इसके बावजूद यमुना मैली की मैली ही है।