इलाहाबाद। फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन के बाद रंगों के त्यौहार होली की धूम मचेगी। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह त्यौहार आपसी भेदभाव मिटाने के साथ ही प्रेम और भाई-चारा बढ़ाने वाला होता है। होलिका दहन से वातावरण की विकृतियां नष्ट होती हैं। मान्यता है कि होलिका तापने एवं दूसरे दिन राख को माथे पर लगाने वाले मानव का मन-मस्तिष्क पवित्र होता है। इस दिन भद्रा होने से धर्माचार्य होलिका दहन में सावधानी बरतने की सलाह देते हुए पूरे यम-नियम से होलिका का दहन करना अत्यंत शुभकारी बता रहे हैं।
श्रीधर्मज्ञानोपदेश संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि होलिका दहन व्यक्ति व समूह के अंदर व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने एवं विचारों का शुद्धिकरण करने का माध्यम है। वसंत पंचमी के दिन से अबीर-गुलाल के साथ प्रहलाद की पूजा कर उनके नाम पर लकड़ी रखकर इसकी शुरुआत की जाती है। उन्होंने कहा कि होलिका दहन से पहले उसका पूजन अवश्य करना चाहिए, बिना उसके होली का महात्म्य समाप्त हो जाता है। होलिका जलाने से पूर्व स्नान कर शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण करें, फिर हाथ में गंगा जल अथवा शुद्ध जल लेकर संकल्प करें। इसमें मम स कुटुम्बस्य डुण्डा राक्षसी प्रीत्यर्थ तथा ग्रह पीडा परिहारर्थ होलिका पूजन महं मरिष्ये का जाप करें। फिर अस्माधिर्भ भये सं त्रस्तै: कृता त्वं होलिके यत। अतस्त्वां पूजयिस्यामि भूते-भूतिप्रदाभौव श्री होलिकायै नम:।। का जाप करने के बाद पूजन करना चाहिए। फिर पूरब की ओर मुंह करके होलिका में जल, अक्षत, पुष्प, मिष्ठान, अबीर-गुलाल, मदार, पीपल, गुलर, कुशा, समी, दूब, पलाश अर्पित करें। इसके बाद अगरबत्ती, धूपबत्ती व घी का दीपक जलाकर व्रतराज पुस्तक के डुंडा राक्षसी कथा का पाठ करने के बाद उसका दहन करने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है।