नई दिल्ली, 27 सितंबर (आईएएनएस)। भारत में स्थायी कारोबार नहीं रखने वाली विदेशी कंपनियों को 18.5 फीसदी न्यूनतम वैकल्पिक कर से छूट देने के सरकार के फैसले से सभी विदेशी निवेशकों को पूरी राहत मिल गई है।
इस सप्ताह वित्त मंत्रालय की घोषणा से एमएटी से जुड़ा सभी विवाद समाप्त हो गया है, क्योंकि भारत में बिना कारोबारी उपस्थिति वाली सभी कंपनियों (विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक और कंपनियां) को एमएटी से छुटकारा दे दिया गया है, चाहे उन कंपनियों के देश के साथ भारत का कर समझौता हो या न हो।
वित्त मंत्रालय ने आयकर अधिनियम-1961 की धारा 115जेबी में एक अप्रैल 2001 से संशोधित करने का फैसला किया है। इसके तहत जिन देशों के साथ भारत का दोहरा कराधान निवारण समझौता है, वहां की कंपनियों को छूट मिलेगी।
यदि किसी देश के साथ भारत का कराधान समझौता नहीं है, तो जब तक वहां की कंपनियों को कंपनी कानून 2013 में भारत में पंजीकृत कार्यालय रखने से छूट न दी गई हो, उन्हें यह छूट नहीं मिलेगी।
दोनों ही स्थितियों में यह छूट तभी प्रभावी होगी, जब विदेशी कंपनियों का भारत में स्थायी कारोबार नहीं हो।
केपीएमजी इंडिया के कर मामलों के प्रमुख गिरीश वनवारी ने शुक्रवार को कहा, “एमएटी नहीं लगाए जाने के बारे में आय कर अधिनियम को बदलने का फैसला स्वागत योग्य कदम है। इससे अस्पष्टता मिटेगी और देश में विदेशी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।”
उन्होंने कहा, “सबसे खुशी की बात वह रफ्तार है, जिससे सरकार ने फैसला किया है।”
गुरुवार को जारी एक सरकारी बयान में कहा गया था, “इस बारे में आय कर अधिनियम में उपयुक्त संशोधन होगा।”
इसी तरह की एक छूट एपी शाह समिति की सिफारिश पर विदेशी कोषों को इस साल एक अप्रैल से दी गई थी। अब यह छूट विदेशी कंपनियों को भी दे दी गई।
2015-16 के बजट में जेटली ने विदेशी संस्थागत निवेशकों को इस साल अप्रैल से एमएटी भुगतान करने से छूट दे दी थी। इसके बाद भी आय कर विभाग ने कम से कम 90 विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को नोटिस भेज दिया था।
एमएटी पर अनिश्चितता के बीच विदेशी निवेशकों ने छह मई को 63 करोड़ डॉलर की बिकवाली कर दी थी, जो जनवरी 2014 के बाद किसी भी एक दिन की सबसे बड़ी बिकवाली थी।